________________
५२४
लब्धिसार-क्षपणासार
यामैं चयधन मिलावने के अथि साधिककी ऐसी (1) संदृष्टि ऊपरि कीएं इतना स १ १२-२१
__ ७ ख । १७ । गु २ द्रव्य भया । ताहि तिस अपकर्षण कीया द्रव्यतै ग्रहि अंतरायामविषै दीएं अंतरायामके अभाव कोए थे निषेक तिनका सद्भाव हो है। इसकौं घटाएं जो अपकृष्ट द्रव्य किंचित् ऊन भया सो ऐसा स १२-याकौं द्वयर्व गणहानिका भाग दोएं प्रथम निषेक ताकों अंतरायाम करि गुण सम७ | ख । १७ । गु | ओ
पट्टिका द्रव्य ताकी साधिक कोएं इतना द्रव्य स। १२-२२ अंतरायामविषै और दोया अव
७! ख । १७| गु । आओ। १२ शेष अपकृष्ट द्रव्य ऐसा स १ १२.- सो द्वितीय स्थिति विर्षे अतिस्थापनावली छोडि
७ ख । १७ । गु । ओ क्रम हीन करि ऐसे उदय योग्य प्रकृतिविर्षे द्रव्य देनेका विधान है। बहुरि उदय अयोग्यका उदयावलीतै वाह्य अंतरायाम अर द्वितीय स्थितिवि ही द्रव्य दीजिए है ।
इति प्रथमोपशम सम्यक्त्वाधिकारसंदृष्टि समाप्त अब क्षायिक सम्यक्त्वाधिकारविष संदृष्टि लिखिए है-तहां प्रथम अनंतानुबंधीका विसंयोजन है। तहां गुणश्रेणी आदिककी संदृष्टि पूर्ववत् जानना। अर तहां च्यारि पर्वनिकी वा तहां स्थितिकांडकके प्रमाणकी संदृष्टि जैसी। पर्वनिविर्षे स्थिति सातमध्ये ७ सागर १००० । प दूरापकृष्टि । उच्छिष्टा ।
" प
बली
कांडकायाम
पa
५। ५ । ५। ५।a इहां स्थितिविर्षे पृथक्त्व लक्ष सागरको वा मध्यविष सहस्र आदि सागरको अर पल्यकी अर दुरापकृष्टिवि च्यारि वार संख्यातकरि भाजितको अर उच्छिष्टावलीकी संदृष्टि प्रथमादि पर्वनिवि जानना। बहुरि तिनके वोचि स्थिति कांडकायामविर्षे पल्यका संख्यातवां भागकी, पल्यका असंख्यातवां बहुभागकी, दूरापकृष्टिका असंख्यात बहुभागकी संदृष्टि जानना । बहुरि सर्व कर्मके द्रव्यकौं सात अर अनंत अर सतरहका भाग दीए अनंतानुबंधो क्रोध द्रव्य ऐसा स । १२-ताकौं
७ । ख। १७ अपकर्षण भागहारका भाग दीएं जो अपकृष्ट द्रव्य भया ताकौं उदयावलो आदिवि निक्षेपण करै है । अर तिसहीकौं संख्यातका भाग दोएं जो कांडक द्रव्य ऐसा स 2 १२ – ताकौं गुणसंक्रमका
७। ख । १७ । १ भाग दीएं प्रथम फालि ऐसा-स। १२ - याते क्रमअसंख्यातगुणा द्वितीयादि फालि तिनकौं
७। ख । १७१। गु बाहर कषाय नव नोकषाय तिनिरूप समय समय परिनमावै है। उच्छिष्टावली मात्र द्रव्य रहैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org