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उप रतन स्थिति
गुणश्रेणि
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उदयावली
लब्धिसार-क्षपणासार
पूर्वसन्नद्रव्य
स
१२-१६ ७ ख १७ गु १२ १६
०
ܝܐ
व ८
स १२-१६-२०
७ ख १७ गु १२ १६
ܝܐ
स
१२-१६-२
७ ख १७ गु १२ १६
०
स १२- २६-४ ७ व १७ गु १२ १६
१ - १२- १६४
स
७ ख १७ गु १२ १६
०
स
१२-१६ ७ ख १७ गु १२ १६
स
७ ख
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स
१२- १६-१८
७ ख १७ गु ओ १२ १६
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०
०
दीया द्रव्य
ܝܐ
१२- १६
१७ गु ओ १२ १६
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०
स
१२- ६४
७ ख १७ गुप्रो प८५
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०
स
१२-१
७ व १७ गु ओ १८५
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प्रथम निषेकविषै दीया द्रव्यरूप धन ऐसा - स । १२ - १६ ७ । ख । १७ गु । ओ । १२ ।१६ a घटानेके अर्थ अन्य भागहार समान जानि अपकर्षण भागहारका हारकरि समच्छेद कीएं ऋण द्रव्य ऐसा स 2 1 १२–२२ ओ
a ७ । ख | १७ गु । ओ । १२ । १६
а
ܝܐ
स
१२- १६-४
१०
७ ख १७ गु श्री पप ४१६-४
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२
१२- १६
७ ख १७ गु यो प प ४१६-४
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२
बहुरि इन दोऊनिका मिलाएं दृश्यमान द्रव्य हो है । तहां उदयावलीका तौ सत्त्व द्रव्य बहुत है अर दिया द्रव्य स्तोक है । तातैं यहां सत्त्व द्रव्यकी संदृष्टिके ऊपर ऐसी ( । ) संदृष्टि कीएं दृश्यमान द्रव्यकी संदृष्टि हो है । बहुरि गुणश्रेणिविषै दीया द्रव्य बहुत है । सत्त्व द्रव्य स्तोक है दीया द्रव्यकी संदृष्टि ऊपरि अधिक की ऐसी (1) संदृष्टि कीएं दृश्यमान द्रव्यकी संदृष्टि हो है । बहुरि उपरितन स्थितिका प्रथम निषेकविषै दो गुणहानिमात्र गुणकारविर्षं अंतर्मुहुर्त घटाया था सो अंतर्मुहूर्तमात्र घटाएं जे चय तिनिरूप ऋण ऐसा स १२ – २०
अर इस ७ । ख । १७ । गु १२ १६ सो इस धनविषै ऋण
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असंख्यातवां भागरूप भागअवहां अन्य गुणकार
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