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________________ ५३० उप रतन स्थिति गुणश्रेणि Jain Education International उदयावली लब्धिसार-क्षपणासार पूर्वसन्नद्रव्य स १२-१६ ७ ख १७ गु १२ १६ ० ܝܐ व ८ स १२-१६-२० ७ ख १७ गु १२ १६ ܝܐ स १२-१६-२ ७ ख १७ गु १२ १६ ० स १२- २६-४ ७ व १७ गु १२ १६ १ - १२- १६४ स ७ ख १७ गु १२ १६ ० स १२-१६ ७ ख १७ गु १२ १६ स ७ ख For Private & Personal Use Only स १२- १६-१८ ७ ख १७ गु ओ १२ १६ ●g ० ० दीया द्रव्य ܝܐ १२- १६ १७ गु ओ १२ १६ 2 ० स १२- ६४ ७ ख १७ गुप्रो प८५ oaa ० स १२-१ ७ व १७ गु ओ १८५ aa प्रथम निषेकविषै दीया द्रव्यरूप धन ऐसा - स । १२ - १६ ७ । ख । १७ गु । ओ । १२ ।१६ a घटानेके अर्थ अन्य भागहार समान जानि अपकर्षण भागहारका हारकरि समच्छेद कीएं ऋण द्रव्य ऐसा स 2 1 १२–२२ ओ a ७ । ख | १७ गु । ओ । १२ । १६ а ܝܐ स १२- १६-४ १० ७ ख १७ गु श्री पप ४१६-४ o aaa २ १२- १६ ७ ख १७ गु यो प प ४१६-४ aaa २ बहुरि इन दोऊनिका मिलाएं दृश्यमान द्रव्य हो है । तहां उदयावलीका तौ सत्त्व द्रव्य बहुत है अर दिया द्रव्य स्तोक है । तातैं यहां सत्त्व द्रव्यकी संदृष्टिके ऊपर ऐसी ( । ) संदृष्टि कीएं दृश्यमान द्रव्यकी संदृष्टि हो है । बहुरि गुणश्रेणिविषै दीया द्रव्य बहुत है । सत्त्व द्रव्य स्तोक है दीया द्रव्यकी संदृष्टि ऊपरि अधिक की ऐसी (1) संदृष्टि कीएं दृश्यमान द्रव्यकी संदृष्टि हो है । बहुरि उपरितन स्थितिका प्रथम निषेकविषै दो गुणहानिमात्र गुणकारविर्षं अंतर्मुहुर्त घटाया था सो अंतर्मुहूर्तमात्र घटाएं जे चय तिनिरूप ऋण ऐसा स १२ – २० अर इस ७ । ख । १७ । गु १२ १६ सो इस धनविषै ऋण १ 19 असंख्यातवां भागरूप भागअवहां अन्य गुणकार www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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