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________________ अर्थदृष्टि अधिकार ५३१ भागहार समान जानि ऐसा २२ ओ । गुणकारकौं परस्पर गुणै जो असंख्यात भया ताकौं धन 3 द्रव्यका दो गुणहानिविषै घटाएं धन द्रव्य ऐसा भया स १२-१६-a ७ । ख । १७ । गु । ओ १२ । १६ ख तन स्थितिका प्रथम निषेकविषै जो अंतर्मुहूर्तमात्र चय घटाए थे ते तो जुदे काठि धन द्रव्यविषै घटा दी तव दो गुणहाणि गुणित चयमात्र उपरितन स्थितिका प्रथम निषेक ऐसा स । १२ – १६ रह्या । तिस ऊपरि तिस ऋण रहित धन द्रव्य मिलावनेकौं अधिककी ७ । ख । १७ । गु । १२ ।१६ ऐसी ( । ) संदृष्टि कीए ं उपरितन स्थितिका प्रथम निषककी संदृष्टि हो है । बहुरि दो गुणहानिका कारविक्रम एक एक घटाए द्वितीयादि निषेक होइ । तिसही में एक घाटि किंचिदून आठ वर्ष घटाएं अंत निषेक हो हैं ऐसें दृश्यमान द्रव्य हो है ताकी रचना ऐसी o } स १२ - १६ - व ८ ७ ख १७ गु १२ १६ ० उपरितनस्थिति Jain Education International ० स १२ - १६ w ܘ ws ܗ ܗ । ८१ (४१) १२ - ६४ ७ ख १७ गु ओ प ८५ स 64 ee ० गुणश्र ेण ० । 150 品酒 d pur For Private & Personal Use Only ws ܗܘ 1 52 अव इहां उपरि 9 उदयावलि ० स १२ - १६ Wr ७ ख १७ गु १२ १६ बहुरि ताके अनंतरि सम्यक्त्वमोहनीका अष्ट वर्ष स्थिति होनेका समयविषे अष्ट वर्षमात्र सम्यक्त्व मोहनी निषेकानिका द्रव्य असा स । ३ । १२ - ताकरि हीन द्वय गुणहानि गुणित ६ । ख । १७ । गु समयबद्धमात्र मिश्र सम्यक्त्वमोहका चरम फालिका द्रव्य ताकों गुणश्रेणि आयामविषै वा उपरितन स्थितिविषै दीया द्रव्यका संदृष्टि पूर्वे कहि आए हैं । बहुरि ताके अनंतरि अष्ट वर्ष स्थितिकरणका द्वितीय समय ता विषै सर्वं मोहनीके द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एक भाग ऐसा स १२ - १ अपकर्षंणकरि ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ एक भाग गुगश्रेणि ७ । ख । १७ गु । ओ आयामविषै असंख्यातगुणा क्रमकरि अर बहुभाग उपरितन स्थितिविषै हीन क्रमकरि पूर्वोत प्रकार देना । इहां उदयादि अवस्थित गुणश्रेणि आयाम है । ताते पूर्वे गुणश्रेणि आयामविषै एक समय उपरितन स्थितिका मिलावना तहां उपरितन स्थितिविषै दीया द्रव्यका गुणकारिविषै एक घाटिकौं न गिणि अपवर्तन कीएं ऐसा स | 21१२- ताकौं किंचिद्न आठ वर्षमात्र गच्छका अर ७ । ख । १७ । गु ओ I www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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