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________________ ५३२ लब्धिसार-क्षपणासार एक घाटि गच्छका आधाकरि होन दो गुणहानिका भाग दीएं चय धन होइ । ताकी दो गुणहानिकरि गणे प्रथम निषेक अर दो गुणहानिका गुणकारविर्षे एक एक धटाएं अंत विर्षे एक घाटि किंचिदून आठ वर्ष घटाएं द्वितीयादि मिषेक हो है । बहुरि गुणश्रेणिविर्षे दीया द्रव्यकौं अंक संदृष्टि अपेक्षा पिच्यासीका भाग देइ एक करि गुणें प्रथम निषेक, च्यारि सोलह करि गुण मध्य निषेक, चौसठिकरि गुण अन्त निषेक ताकी रचना ऐसी स। १२- । १६-14(७ख १७ भो व6:।१६।। स १२-११६-१ १. ७।ख । १७. यो-1८-१६- - स १२ । १६ १. ७। ।१७।यो। -१६- ८ ___२ Hi१२-1६४ ७ख। १२ भोप ८५ स।३।१२।खा१७ भो।प।।८५ 1a1a बहुरि इस ही समयविौं सम्यक्त्वमोहनीका द्रव्यकौं संख्यातका भाग दीएं प्रथम कांडक द्रव्य होइ । ताकौं पल्यके अर्धच्छेदकौं दोयवार असंख्यातका भाग दीएं अधःप्रवृत्त भागहार ऐसा छे ताका भाग दीए प्रथम फालिका द्रव्य ऐसा स । । १२- सो अपकर्षण कीया द्रव्यकै aa ७।ख । १७।२छे 2 असंख्यातवे भागमात्र है अर देनेका विधान तैसें ही है । तातें अपकर्षण द्रव्यवि याके मिलावनेकौं अधिककी संदृष्टि करि देनी । बहुरि ऐसे ही द्वितीयादि समयनिविर्षे रचना करनी । बहुरि प्रथम कांडककी अंत फालिका द्रव्य ऐसा स ।।१२ - कैसे ? सो कहिए है ७। ख । १७१1a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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