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लब्धिसार-क्षपणासार
उदयरूप प्रथम समयतें लगाय गुणश्रेणि आयामविर्षे क्रम अधिकरूप अर ताके उपरितन स्थितिविष अतिस्थापनावली छोडि क्रम होनरूप द्रव्य निक्षेपण किया तिनके अनुसारि लकीरनिको संदृष्टि क्रम होनरूप वा अधिकरूप करी है। बहुरि इसही समयविर्षे अनुभागका अनुसमयापवर्तन हो है। तहां पूर्व अनुभाग एक गुणहानिविर्षे स्पर्धक शलाकाकौं नाना गृणहानिकरि गुण ऐसा (९ ना) ताकौं अनंतका भाग दोएं द्वितीयावलोके प्रथम निषेकका अनुभाग ऐसा (९ ना) इहां
अवशेष बहुभाग नष्ट कीएं ते ऐसे ९ ना ख बहुरि ताकौं अनंतका भाग दीएं उदयावलोके अंत
निषेकका अनुभाग ऐसा ९ । ना । इहां नष्ट कोएं बहुभाग ऐसा ९ । ना। ख ख बहुरि ताकौं ख । ख
ख ख अनंतका भाग दोएं उदयावलीके प्रथम निषेकका अनुभाग ऐसा ।९ ना। इहां अवशेष बहुभाग
खख ख नष्ट कीएं ते ऐसै ९ ना ख ख ख ऐसे ही अनंत गुणहानि लीएं समय समय अनुभागापवर्तनका
ख । ख । ख विधान जानना।
बहुरि जिस समयविर्षे सम्यक्त्व मोहनीकी स्थिति अष्ट वर्ष प्रमाण हो है तिस समयतें पूर्व समयवि विधान हो है ताको संदृष्टि कहिए है-सम्यक्त्व प्रकृतिका द्रव्य ऐसा-स ३ । १२ -
७। ख । १७ । गु इहां गुणसंक्रम विधानतें असंख्यातगुणा द्रव्य भया है। परंतु सामान्यतै इतना लिख्या सो नानागुणहानिविषै वर्ते है। तहां तिस द्रव्यकों द्वयर्व गुणहानि (१२) का भाग देइ ताकौं दो गुणहानि (१६) का भाग दीएं चय होइ। ताकौं दो गणहानिकरि गणें उदयावलीका प्रथम निषेक हो बहुरि दा गुणहानिमात्र गुणकारविर्षे क्रमतें एक एक घटाएं मध्य निषेक होइ । एक घाटि आवली
ऐसी १६ -- ४ घटाएं ताका अंत निषेक होइ । बहुरि ताहीमैं आवली घटाएं गुणश्रेणिका आदि
निषेक होइ। बहुरि तैसैं ही मध्य निषेक होइ। ताहीमैं एक घाटि अंतर्मुहूर्त ऐसा १६ - ।२१ घटाएं ताका अंत निषेक होइ। बहुरि ताहामें अंतर्मुहूर्त घटाएं उपरितन स्थितिका आदि निषेक
होइ । बहुरि तैसें हो मध्य निषेक होइ। तिसहोविर्षे एक घाटि किंचिदून आठ वर्ष ऐसँ १६ - व ८घटाएं अंत निषेक होइ ऐसैं तौ पूर्व सत्त्व द्रव्य पाइए।
बहुरि इहां अपकर्षणकरि दीया द्रव्य पूर्वोक्त सम्यक्त्वप्रकृतिके द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारके असंख्यातवां भागका भाग दीएं ऐसा स १२ -याकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग
७। ख । १७। गुआ
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