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श्रीक्षपणासारगर्भित लब्धिसारका
अर्थसंदृष्टिअधिकार संदृष्टेलब्धिसारस्य क्षपणासारमीयुषः ।
प्रकाशिनः पदं स्तौमि नेमीन्दोर्माधवप्रभोः ॥१।। लब्धिसार क्षपणासार शास्त्रविर्षे कहे जे अर्थ तिनविर्ष केते एक अर्थनिकी संदृष्टि जो पूर्वाचार्यनिकरि कीनी संकेतरूप सहनानी तिनके स्वरूपका निरूपण कीजिए है-सो संदृष्टि तो मूल ग्रन्थविष वा टीकाविषं जैसैं लिखीं तैसें इहां लिखिए है। तहाँ परंपरा लेखक दोषतै जे संदृष्टि तहाँ अन्यथा लिखीं तिनिने बुद्धि अनुसारि सवारि लिखौंगा, वा बुद्धि भ्रमतें अन्यथा लिखीं तौ विशेष बुद्धि सवारि लीजियो । बहुरि तिनिका स्वरूप गाथानिविषै लिख्या नाहीं, टीकाविष भो लिख्या नाहीं. मैं मेरी बुद्धि अनुसारि विधि मिलाइ २ तिनके स्वरूपकौं लिखोंगा सो आकारादिरूप संदृष्टि तो कठिन अर मेरी बुद्धि अल्प, शास्त्रवि लिख्या नाही, वा बतावनेवाला मिल्या नाही तातें जानौ हौं तिनके स्वरूप लिखने में चूक परैगी परंतु मार्ग तो जान्या जाइ इस वासमैं लिखौं हौं सो जहाँ चूक होइ तहाँ विशेष बुद्धि सवारि शुद्ध करियो । मोकौं बालक मानि क्षमा करियो। बहुरि इहाँ संदृष्टि वा तिनका स्वरूप विर्षे जिनिका मोकौं स्पष्ट ज्ञान न भया ते इहाँ नाही लिखी हैं, मूल ग्रंथतें जानियो। बहुरि केते इक सुगम जानि ग्रंथ विस्तार भयौं नाहीं लिखिये है तिनिकौं विधि मिलाइ जानिये। बहुरि केते इक गोम्मटसार टीकाका संदष्टि अधिकार विर्ष लिखी हैं ते इस शास्त्रविर्ष थीं तिनकौं इहाँ नाहीं लिखिए है, तहांतें जानियो। बहुरि जे संदृष्टि वा तिनका स्वरूप इहाँ लिखिए है ते इहाँतें जानियो। तहाँ एकबार जिस अर्थकी जो संदृष्टि लिखी होइ सोई तिस अर्थकी जहाँ तहाँ संदृष्टि जानि लेनी। ग्रंथ विस्तारभयतें वारम्बार लिखी नाही है। बहुरि इहाँ लिखी संदृष्टिनिके वा तिनके स्वरूपकौं जान्या चाहे सो पहलै तौ श्रीगोम्मटसारकी भाषाटीकाविर्ष जो जुदा जुदा संदृष्टि अधिकार कीया है ताकौं अभ्यासै तहाँ पहलै सामान्य स्वरूप निरूपण कीया है ताकौं जानें तो संदृष्टिनिकौं पहिचान अर विशेषकौं जानैं । वहां इहां सदृश संदृष्टि होइ तिनिका ज्ञान होइ जाइ। बहुरि इहां आकार रूप संदृष्टि बहुत हैं। तहाँ ऊर्ध्व रचनाविषै घटता क्रमलीएँ निषेकादिकनिकी संदृष्टि असी
आयामादिविर्षे बधता क्रमकी ऐसी
अर पूर्व द्रव्य था अर नवीन
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