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क्षपणासार
अंक हटकर जैसें लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी जघन्य कृष्टिविषै जो अनुभाग पाइए है तादूणा द्वितीय कृष्टिविषै तातें चौगुणा तृतीय कृष्टिविषै हैं । तातै अठगुणा अंत कृष्टिविषै है । बत्तीस गुणित बादालगुणा लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिकी प्रथम कृष्टिविषै अनुभाग है । इहां पहले अन्य प्रकार गुणकार था तातैं तहां पर्यन्त प्रथम संग्रह कृष्टिका ही इहां अन्य प्रकार गुणकार भया । तातैं इहांत लगाय द्वितीय संग्रह कृष्टि कही । ऐसें ही अन्त पर्यन्त विधान जानना | बहुरि याही प्रकार यथार्थ कथन जानना । दोयकी जायगा अनन्त जानना । अर संग्रह कृष्टिविषै च्यारि अन्तर कृष्टि कहीं हैं तहां अनन्ती जाननी । ऐसें अनुभाग के अविभागप्रति - च्छेदनिकी अपेक्षा कृष्टिनिका कथन जानना || ४९९ ||
४०८
लोहस्स अवरकिट्टिगदव्वादो कोधजेट्ठकिट्टिस्स ।
Goat त्तिय ही कम देदि अनंतेण भागेण ॥ ५०० ॥
लोभस्य अवरकृष्टिगद्रव्यात् क्रोधज्येष्टकृष्टेः ।
द्रव्यमिति च होनक्रमं दीयते अनंतेन भागेन || ५०० ||
स० चं० - लोभकी जघन्य कृष्टिका द्रव्यतें लगाय क्रोधको उत्कृष्ट कृष्टिका द्रव्य पर्यन्त हीन क्रमलीए द्रव्य दीजिये है । सोई कहिए है
कृष्टिविष देने योग्य अपकर्षण कीया द्रव्यविषै जो द्रव्य सो सर्वधन है । याकौं कृष्टिनिका प्रमाणमात्र जो गच्छ ताका भाग दीए मध्य कृष्टिविषै जितना द्रव्य दीया ताका प्रमाणमात्र मध्य हो है । या एक कृष्टि घाटि गच्छका आधाकरि हीन जो दो गुणहानि ताका भाग दी एक विशेषका प्रमाण आवे है । याकौं दोगुणहानिकरि गुण जो प्रमाण आवै तितना द्रव्य तौ लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी जघन्य कृष्टिविषै दीजिए है । याके आगे द्वितीयादि कृष्टितै लगाय सर्व संग्रह कृष्टिनिकी अंतर कृष्टि उल्लंघि क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी अंत कृष्टिपर्यंत एक एक विशेष घटता क़म लीए द्रव्य दीजिए है । इहां पूर्व - पूर्वं कृष्टितै उत्तर - उत्तर कृष्टि विषै द्रव्य दीया सोही दृश्यमान है सो अनंतभाग घटता क्रम लीएं है पूर्व कृष्टिकौं अनंतका भाग दीएं तहां एक भागमात्र घटता उत्तर कृष्टिका द्रव्य प्रमाण हो है ||५००॥
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लोभस अवरकिट्टिगदव्वादो को जेड किट्टिस्स ! दव्वं तु होदि होणं असंखभागेण जोगेण ||५०१ ॥
लोभस्यावर कृष्टिगद्रव्यतः क्रोधज्येष्ठ कृष्टेः ।
द्रव्यं तु भवति होनं असंख्यभागेन योगेन ||५०१ ||
स० चं० - लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी जघन्य कृष्टिका द्रव्य जो प्रदेशसमूह तातें क्रोध की
१. लोभस्स जहण्णियाए पदेसग्गं बहुअं । विदियाए किट्टीए विसेसहीणं, एवमणंत रोपणिधाए विसेसहम भागेण जाव कोहस्स चरिमकिट्टि त्ति । क० चु० पृ० ८०१ ।
२ . परंपरोपणिधाए जहण्णियादो लोभकिट्टीदो उवकस्सियाए को किट्टीए पदेसग्गं विसेसहीणमणंतभागेण । क० चु० पृ० ८०१ ।
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