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क्षपणासार
४१० द्रव्य हो है। तिसविषै अघस्तन शीर्ष १, अधस्तन कृष्टि २, मध्यम खंड ३, उभय द्रव्यविशेष ४ ऐसै च्यारि विभाग करिए सो अधस्तन शीर्षादिकका स्वरूप उपशम चारित्रविषै सूक्ष्मकृष्टिका वर्णन करतें पूर्व विशेषकरि कह्या है सो जानना । वा इहां भी किछू कहिए है
तहां पूर्व समयविषै करी कृष्टि तिनविषै प्रथम कृष्टितै लगाय विशेष घटता क्रम है सो सर्व पूर्व कृष्टिनिकौं आदि कृष्टि समान करनेके अथि घटे विशेषनिका द्रव्यमात्र जो द्रव्य तहां दीजिए ताका नाम अधस्तन शीर्ष विशेष द्रव्य है। बहुरि पूर्वं न थी ऐसी करी जे नवीन कृष्टि तिनिकौं पूर्व कृष्टिकी आदि कृष्टिके समान करनेके अथि जो द्रव्य दीया ताका नाम अधस्तन कृष्टि द्रव्य है। बहुरि इन सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टिनिविषै आदि कृष्टिनै लगाय अन्त कृष्टि पर्यंत विशेष घटता क्रम करनेके अर्थि जो द्रव्य दीया ताका नाम उभय द्रव्य विशेष द्रव्य है। बहुरि इन तीनोंको जुदा कीएं अवशेष जो द्रव्य रह्या ताकौं सर्व कृष्टिनिविषै समानरूप दीजिए ताका नाम मध्यम खंड है । ऐसें संग्रह कृष्टिनिके पार्श्ववर्ती कृष्टिनिविषै तौ अधस्तन शीर्ष, मध्यम खंड, उभय द्रव्य विशेषरूप तीन प्रकार द्रव्य दीजिए है। अर संग्रहकृष्टिनिके नीचे जे नवीन कृष्टि करी तिनविषै अधस्तन शीर्ष, मध्यम खंड, उभय द्रव्य विशेषरूप तीन प्रकार द्रव्य दीजिए है। अब याका विशेष दिखाइए है-तहां द्वितीय समयविषै कैसे द्रव्य दीजिए है सो वर्णन कीजिए है
क्रोध मान माया लोभके पूर्व अपूर्व स्पर्धकसम्बन्धी द्रव्यतै पहले समय जो अपकर्षण कीया द्रव्य तातै असंख्यातगुणा द्रव्य अपकर्षण करै है। तहां सर्व द्रव्यकौं आठका भाग दीएं एक एक भागमात्र लोभ माया मानका, पांच भागमात्र क्रोधका द्रव्य पूर्वोक्त प्रकार यथासम्भव साधिक वा किंचित् न्यूनपना लीएं जानना। बहुरि याकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीएं एक भागमात्र द्रव्य पूर्व अपूर्व स्पर्धकनिविषै देना। ताकौं जुदा राखि अवशेष द्रव्यका पल्यका प्रथम समयवत् बारह संग्रह कृष्टिनिविष विभाग करिए तब सर्व द्रव्यकौं चौईसका भाग दोए तहां ग्यारह संग्रह कृष्टि निका एक एक भागमात्र अर क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिका तेरह भागमात्र द्रव्य हो है । इहां साधिकपना वा न्यूनपना यथासम्भव जानि लेना।
अब द्वितीय समयविये अपकर्षण कीया जो द्रव्य तिसविर्ष एक एक संग्रह कृष्टिका द्रव्य जो कह्या तिसविषै अधस्तन शीर्षादि च्यारि प्रकार द्रव्यका प्रमाण ल्याइए है-तहां प्रथम समयविष अन्त कृष्टिनै लगाय कृष्टि २ प्रति जितना द्रव्य बध्या सो एक विशेष है। ताका प्रमाण पूर्वै कह्या था सो आदिविषै जो विशेषका प्रमाण सो आदि अर एक एक विशेष कृष्टि कृष्टि प्रति बध्या तातै एक विशेष उत्तर अर प्रथम समयविष कीनी कृष्टिनिका प्रमाणमात्र गच्छ सो ऐसै आदि उत्तर गच्छ स्थापि श्रेणी व्यवहार नाम गणितके अनुसारि
रूपेणोनो गच्छो दलीकृतः प्रचयताडितो मिश्रः ।
प्रभवेण पदाभ्यस्तः संकलितं भवति सर्वेषां ।। १ ।। इस सूत्रतै एक घाटि गच्छका आधाकौं विशेषकरि गुणि ताकौं आदिवि जोडि ताकौं गच्छकरि गुण सबनिका संकलित धन कहिए जोड्या हूवा प्रमाण हो है। सो जो जो प्रमाण होइ तितना तितना अधस्तन शीर्ष द्रव्य हो है । सोई कहिए है
एक विशेष आदि एक विशेष उत्तर अर प्रथम कृष्टिविषै विशेष मिल्या नाहीं तातै एक
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