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सूक्ष्म कृष्टियोंमें द्रव्यका बटवारां दूसरा समयविर्ष संख्यातगुणा है। ऐसे समय समय प्रति सूक्ष्म कृष्टिदिएं दीया द्रव्य क्रमतें संख्यातगुणां जानना । सो द्वितीय संग्रह कृष्टिवेदक कालरूप जो सूक्ष्म कृष्टि करनेका काल ताका अन्त समय पर्यन्तजानना ।। ५६९ ॥
दव्वं पढमे समये देदि हु सुहुमेसणंतभागूणं'। थूलपढमे असंखगुणूणं तत्तो अणंतभागूणं ॥ ५७० ।। द्रव्यं प्रथमे समये ददाति ही सूक्ष्मेष्वनंतभागोनं ।
स्थूलप्रथमे असंख्यगुणोनं तत अनंतभागोनं ॥ ५७० ॥ स. चं०-सूक्ष्म कृष्टिकरण कालका प्रथम समयविष सूक्ष्म कृष्टिकी जघन्य कृष्टितै लगाय अनन्तवां भाग घटता क्रम लीएं अर उत्कृष्ट सुक्ष्म कृष्टितै प्रथम जघन्य बादर कृष्टिविष असंख्यातगुणा घटता अर तातै द्वितीयादि बादर कृष्टिनिविर्षे अनन्तवां भाग घटता क्रम लीये द्रव्य दीजिए है । सो इहां विशेष निर्णयके अथि व्याख्यान करिए है—सो बादर कृष्टिकरणका द्वितीय समयविषै जो विधान कह्या था ताकौं स्मरणकरि इहां जो विधान कहिए है ताकौं सयझना । तहां प्रथम आयद्रव्य व्ययद्रव्य घातद्रव्यनिका स्वरूप कहिए है
लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं तहां एक भागमात्र लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिविर्षे आय द्रव्य है । बहुरि इतना ही लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिविषै व्यय द्रव्य है। आनुपूर्वी संक्रमणके नियमनै लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिविर्षे आय द्रव्य है नाहीं । बहुरि अपनी अपनी संग्रहकी अन्त कृष्टिका द्रव्यकौं अपनी अपनी कृष्टिनिका प्रमाणकौं अपकर्षण भागहारका असंख्यातवां भागका भाग दीए एक भागमात्र जो अन्तविर्षे नष्ट करीं ऐसी घातकृष्टिनिका प्रमाणकरि गुणें अर विशेष अधिक कीए घात द्रव्यका प्रमाण हो है। तहां घातद्रव्य कृष्टिसम्बन्धी व्ययद्रव्य सर्व व्यय द्रव्यके असंख्यातर्फे भागमात्र है। ताकौं घटाए जो व्यय द्रव्य रह्या तितना घात द्रव्यतै ग्रहणकरि जिन कृष्टिनिका व्यय द्रव्य भया था तहां ही दीए स्वस्थान गोपुच्छ हो है। बहुरि घात कृष्टिनिका प्रमाणमात्र जे विशेष तिनकौं घात कीए पीछे अवशेष रहीं जे कृष्टि तिन एक एक विर्षे देना। तातै ताकौं अवशेष कृष्टिनिका प्रमाणकरि गुण जो द्रव्य होइ तितना द्रव्य घात द्रव्यतै ग्रहि करि दीए परस्थान गोपुच्छ भी होइ है। ऐसे सर्व कृष्टिनिका एक गोपुच्छ भया ।
बहुरि पूर्वोक्त दोय प्रकार द्रव्य दीए पीछे अवशेष जो घात द्रव्य रह्या तिसविष ताकौं घात कीए पीछे अवशेष रहीं कृष्टिनिका प्रमाणमात्र गच्छका भाग दीएं जो एक खंड मध्यम धनरूप भया ताकौं एक घाटि गच्छका आधा प्रमाणमात्र जे विशेष तिनकरि अधिक कीए जो द्रव्य भया ताकौं तृतीय संग्रह कृष्टिका अवशेष घात द्रव्यतै ग्रहि तृतीय संग्रहका जघन्य कृष्टिवि दीजिए है। अवशेष द्रव्यविर्षे घटता क्रम लीए अन्य कृष्टिनिविर्षे दीजिए है। ऐसे अपने
१. जहणियार किट्टीए पदेसग्गं बहुअं। विदियाए विसेसहीणमणंतभागेण । तदियाए विसेसहीण । एवमणंतरोपणिधाए गंतण चरिमाए सहमसांपराइयकिट्रीए पदेसग्गं विसेसहीणं। चरिमादो सदमसांपराइयकिट्टीदो जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए दिज्जमाणगं पदेसग्गमसंखेज्ज गुणहीणं । तदो विसेसहीणं । क० चु० पृ० ८६५ ।
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