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योगनिरोध करते समय क्रियाविशेषका निर्देश एकैकस्य निष्टंभनकालो अंतर्मुहूर्तमात्रो हि ।
सूक्ष्म देहनिर्माणं आनं हीयमानं करणानि ॥६३०॥ स० चं०-एक एक बादर सूक्ष्म मनोयोगादिकके निरोध करनेका काल प्रत्येक अंतर्मुहुर्तमात्र जानना । बहुरि सूक्ष्म काययोगवि तिष्ठता सूक्ष्म उश्वासको नष्ट करनेके अनंतरि सूक्ष्म काययोग नाश करनेकौं प्रवर्ते है । ताकै विना इच्छा अबुद्धिपूर्वक आगें कहिए है ते कार्य हो हैं ॥६३०॥
सुहुमस्स य पढमादो मुहुत्तअंतो त्ति कुणदि हु अपुव्वे । पुन्वगफड्ढगहेट्ठा सेढिस्स असंखभागमिदो' ॥६३१॥ सूक्ष्मस्य च प्रथमात् मुहूर्तान्तमिति करोति हि अपूर्वान् ।
पूर्वस्पर्धकाधस्तनं श्रेण्या असंख्यभागमितं ॥६३१॥ स० चं०-सूक्ष्म काययोग होनेका प्रथम समयतें लगाय अंतर्मुहूर्त कालपर्यन्त पूर्व स्पर्धकनिके नीचें जगच्छेणिके असंख्यातवै भागमात्र अपूर्व स्पर्धक करै है । सोई कहिए है
पूर्व स्पर्धकनिका स्वरूप गोम्मटसारका कर्मकांडवि जो बंध-सत्त्व-उदय अधिकार है तिसविर्षे प्रदेशबंधका कथनका प्रसंग पाइ योगनिका वर्णन कीया है, तहातै जानना। इहाँ भी किछु कहिए है
_जघन्य योगस्थानयुक्त जीव ताके लोकमात्र प्रदेश तिनविर्षे जिस प्रदेशविर्षे सवः स्तोक योगशक्ति पाइए ताकौं स्थापि ताके उपरि तिसतै बंधती अर अन्य प्रदेशनि” हीन जिस अन्य प्रदेशविर्षे योगशक्ति पाइए ताकौं स्थापँ तिस प्रदेशते याविर्षे जितनी योग शक्ति बंधती है ताका नाम अविभागप्रतिच्छेद है। बुद्धिविर्षे इतने प्रमाण खंड कल्पि याकरि योगशक्तिका प्रमाण कीजिए तब जघन्य शक्तियुक्त प्रदेशनिविर्षे असंख्यात लोकमात्र अविभागप्रतिच्छेद हो हैं। इनका समहरूप जो एक प्रदेश ताकौं जघन्य वर्ग कहिए है। बहरि इतने इतने अविभागप्रतिच्छेद जिनि प्रदेशनिविर्षे समानरूप पाइए तिनिका समूहका नाम जघन्य वर्गणा है । ते प्रदेश कितने हैं ?
सर्व जीवके प्रदेशनिकौं साधिक ड्योढ गुणहानिका भाग दीएँ एक भागमात्र हैं, सो असंख्यात जगत्प्रतरप्रमाण हैं। इहां एक गुणहानिविर्षं जो स्पर्धकनिका प्रमाण ताकौं एक स्पर्धकवि जो वर्गणानिका प्रमाण ताकौं गुणें जो होइ सो एक गुणहानिका प्रमाण जानना । बहुरि ताके उपरि जघन्य वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदनितें एक अविभागप्रतिच्छेद जिनिविर्षे अधिक पाइए ऐसै वर्गनिका समूहरूप द्वितीय वर्गणा है । ते वर्गरूप प्रदेश कितने हैं ?
___जघन्य वर्गणाके प्रदेशनितें एक विशेषमात्र घटती हैं। विशेषका प्रमाण जघन्य वर्गणाकौं दोय गुणहानिका भाग दीएँ जो होइ सो जानना। बहुरि इहांतें ऊपरि द्वितीय गुणहानिकी प्रथम वर्गणापर्यन्त वर्गणानिविर्षे प्रदेशरूप वर्गणानिका प्रमाण एक एक विशेषमात्र घटता क्रमतें जानना।
तहां द्वितीय वर्गणाका वर्गके अविभागप्रतिच्छेदनितें एक अधिक अविभागप्रतिच्छेदयुक्त वर्गनिका समूहरूप तृतीय वर्गणा होड ऐसैं एक एक अधिक अविभागप्रतिच्छेदयुक्त वर्गनिका क्रम लीएँ जगच्छेणिका असंख्यातवां भागमात्र वर्गणानिकी रचना करिए, इनका समूहका
२. पढमसमए अपुन्वफद्दयाणि करेदि पुव्वफद्दाणं हे?दो । क. चु. १, ९०४ ।
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