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कृष्टियों में द्रव्यके वटवारेकी प्ररूपणां
क्रोधस्य च प्रथमात् मानादौ क्रोधतृतीयद्वितीयगतम् । ततः संख्ये गुणमधिकं संख्येयसंगुणितम् ।। ५७७ ॥
स० चं० - बहुरि तिस पूर्वोक्त क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टित मानकी प्रथम संग्रहविषै संक्रमण भया द्रव्य संख्यातगुणा है, जातै लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिका द्रव्यतै क्रोधकी प्रथम संग्रहका द्रव्य तेरहगुणा है । बहुरि तातैं क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टितें क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिविषै संक्रमण भया प्रदेश विशेष अधिक है । इहां विशेषका प्रमाण पात्रानुसारि पल्यका असंख्यातवां भागमात्र है । बहुरि तातें क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टितें क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिविषै संक्रमण भया प्रदेश समूह संख्यातगुणा है । यद्यपि इहां पूर्वोक्तर्त पात्र अल्प है, स्तोक कृष्टिनिका प्रमाण है तथापि वेदिये है जो संग्रह कृष्टि ताका द्रव्य है सो ताके अनंतरि जो संग्रह कृष्टि वेदने में आवै तहां संक्रमण होने योग्य औरनितें संख्यातगुणा कह्या है, तातैं इहां वेद्यमान क्रोधकी प्रथम संग्रहका ताके अनंतरि वेद्यमान द्वितीय संग्रह विषै संक्रमण भया द्रव्य संख्यातगुणा कया है । ऐसें इस कथनका अवसर उल्लंघि आए तो भी इहां कथन कीया, सो सूक्ष्म कृष्टिका प्रमाण ल्यावनेकों पूर्वे कथन कीया ता कर्म मिलावनेकौं कह्या है । कैसे ? लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टितैं जो ताकी तृतीय संग्रह कृष्टिविषै संक्रमण प्रदेश भया तातैं संख्यातगुणा प्रदेश सूक्ष्म कृष्टिरूप हो है । ऐसें यह अनुक्रम कह्या, सो इहां ही यह गुणकारकी प्रवृत्ति नाहो भई है । पूर्वं बादर कृष्टिविष भी संख्यातगुणे द्रव्य संक्रमण भया द्रव्य संख्यातगुणा कहा हैं । ऐसें क्रोधका द्रव्य तेरहगुणा था, ता संक्रमण भया द्रव्य चौदहका गुणकार लीएं कह्या था, ऐसें ही क्रमतें इहां लोभकी द्वितीय कृष्ट द्रव्य तेईसगुणा है, तातैं संक्रमण भया द्रव्य चौईसका गुणकार लीएं जानना । इस अनुक्रम जाननेकौं इहां यह कथन कीया है ।। ५७७ ॥
लोस्स विदिट्टै वेदयमाणस्स जाव पढमठिदी | आवलितियमवसेसं आगच्छदि विदियदो तदियं ।। ५७८ ।।
लोभस्य द्वितीयकृष्ट वेद्यमानस्य यावत् प्रथमस्थितिः । आवलित्रिकमवशेषमागच्छति द्वितीयतस्तृतीयं ॥ ५७८ ॥
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स० चं० - या प्रकार लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिकों वेदता जीवकें ताकी प्रथम स्थितिविषै यावत् तीन आवली अवशेष रहें तावत् द्वितीय संग्रहतं तृतीय संग्रहकौं द्रव्य संक्रमणरूप होइ प्राप्त हो है । सो कहिए है
लोभी द्वितीय संग्रहकी प्रथम स्थितिविषै विश्रमणावली संक्रमणावली उच्छिष्टावली ए तीन अवशेष हैं तावत् लोभकी द्वितीय संग्रहका द्रव्य लोभकी तृतीय संग्रहविषे दीजिए है । जातें पढमसंग हकिट्टी दो कोहस्स चेव विदियसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुणं । एसो पदेससंकमो अइक्कंती उक्खेदिदो सुमसां पराइयकिट्टीसु की रमाणीसु आसओ त्ति काढूण । क० चु० पृ० ८६८ ।
१. हिन्दी टीका में 'असंख्यातगुणा है' यह पाठ मुद्रित है ।
२. एण कमेण लोभस्स विदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पणमट्ठिदी तिस्से पढमट्टिदीए आवलिया समयाहिया सेसा ति तम्हि समये चरिमसमयबादरसांपराओ । क० चु० पृ० ८६८ ।
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