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क्षीणकषायगुणस्थानविधिनिर्देशः
४८५ वहस्थितिखंडेऽतीते संख्यभागा गतास्तदद्धायाः।
चरमं खंडं गृह्णाति लोभ इव तत्र देयादि ॥ ६०२ ॥ स० चं०-पूर्वोक्त प्रकार क्रम लीए संख्यात हजार स्थितिकांडक व्यतीय भएं क्षीणकषाय कालकौं संख्यातका भाग देतें तहां बहुभाग गएं एक भाग अवशेष रह्या तब तीन घातियानिका अन्त कांडककौं ग्रहण करै है। तहां देयादिक द्रव्यका विधान सूक्ष्म लोभविर्षे कहा था तैसें जानना। सो कहिए है
इहां क्षीणकषायका काल जितना अवशेष रह्या तीहि विना तीन घातियानिकी अवशेष रही सर्व स्थितिको अन्त कांडककरि घारौं है । क्षीणकषायसंबंधी गुणश्रेणित लगाय ताके नीचला क्षीणकषाय कालका संख्यातवां भागमात्र निषेक अर तातै संख्यातगुणा गुणश्रेणिशीर्षके उपरिवर्ती निषेकनिकों ग्रहि अन्त कांडककरि लांछित करै है ऐसा जानना। ताके द्रव्य देनेका विधान जैसे लोभका अन्त कांडकविर्षे कह्या तैसें जानना । बहुरि ऐसे अन्त कांडककी प्रथमादिक फालिनिकौं घातकरि पीछे किंचित् ऊन द्वयर्धगुणहानिगुणित समयप्रबद्धमात्र जो अन्त फालिका द्रव्य ताकौं उदय निषेकतै लगाय क्षीणकषायका द्विचरम समयपर्यन्त असंख्यातगुणा क्रम लीए अर द्विचरम समयविर्षे दीया द्रव्यतै असंख्यात पल्य वर्गमूलगुणा क्षीणकषायका अन्त समयसंबंधी निषेकवि. द्रव्य दीजिए है
चरिमे खंडे पदिदे कदकरणिज्जो त्ति भण्णदे एसो । तस्स दुचरिमे णिद्दा पयला सत्तुदयवोछिण्णा' ॥ ६०३ ॥ चरिमे खंडे पतिते कृतकरणीय इति भण्यते एषः ।
तस्य द्विचरमे निद्रा प्रचला सत्त्वोदयव्युच्छिन्ना ॥ ६०३ ॥ स० चं०-ऐसै अन्त कांडकका घात होते याकौं कृतकृत्य छद्मस्थ कहिए, जाते याके ऊपरि तीनि घातियानिका स्थितिकांडकघात
केवल उदयावलीके बाह्य तिष्ठता द्रव्यकौं उदयावलीविष प्राप्त करणेरूप उदीरणा ही करै है, सो यावत् अधिक समय आवली अवशेष रहै तहां पर्यन्त वर्ते है। बहुरि ताके ऊपरि एक एक समयविर्षे एक एक निषेकका क्रमतें उदय ही पाइए है । जातै उदयावलीविर्षे प्राप्त द्रव्यकी उदीरणा न हो है । बहुरि ऐसे क्षीणकषायका द्विचरम समय प्राप्त भया तब निद्रा प्रचला कर्मका सत्त्व अर उदयका व्युच्छेद भया। इहां शुक्लध्यान होतें भी अव्यक्त निद्रा वा प्रचलाका उदय संभवै था सो भी नाश भया । अब इहां क्षपकश्रेणि चढ़नेवाले जीव तीन वेदविर्षे एक वेद अर च्यारि कषायविर्षे एक कषायका उदय सहित श्रेणी ढ़नेकी अपेक्षा बारह प्रकार हैं। तहां पूर्वोक्त सर्व प्ररूपणा पुरुषवेद अर क्रोधकषाय सहित श्रेणी चढ़नेवालेकी जाननी ॥ ६०३ ॥ बहुरि अवशेष ग्यारह प्रकार जीवनिविर्षे विशेष है सो कहिए है। तहां पुरुषवेद अर मानादिक कषायसहित श्रेणी चढ़नेवालेकै विशेष है सो कहिए है
१. तदो दुचरिमसमये णिहा-पयलाणमुदयसंतवोच्छेदो । क० चु०, पृ० ८९४ ।
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