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क्षपणासार
संक्रमण द्रव्यकरि तौ तिनि संग्रह कृष्टिनिकी जो जघन्य कृष्टि ताके नीचें केती इक नवीन अपूर्व कृष्टि करिए है। सो इनका नाम अधस्तन कृष्टि है। बहुरि केती इक तिनि संग्रह कृष्टिनिकी पूर्व अवयव कृष्टिनिके वीचि वीचि नवीन अपूर्व कृष्टि करिए है। इनका नाम अंतर कृष्टि है। बहुरि बंध द्रव्यकरि अवयव कृष्टिनिके वीचि विचि ही नवीन अपूर्व कृष्टि करिए हैं सो इनका भी नाम अंतर कृष्टि है। बहुरि केताइक संक्रमण द्रव्य वा बंध द्रव्यकौं पूर्व कृष्टिनिहीविष निक्षेपण करै है सौ यह विधान कहिए है ॥ ४२७ ।।
हेद्रा किट्टिप्पहदिसु संकमिदासंखभागमेत्तं तु । सेसा संखाभागा अंतराकिट्टिस्स दव्वं तु ॥ ५२८ ।। अधस्तनकृष्टिप्रभृतिषु संक्रमितासंख्यभागमात्र तु।
शेषा असंख्यभागा अंतरकृष्टद्रव्यं तु ॥ ५१८ ॥ स० चं-सक्रमण द्रव्यकौं असंख्यातका भाग दीएं तहां एक भागमात्र द्रव्य तौ नीचलो कृष्टि आदिविर्षे दीजिए है। भावार्थ यहु-या द्रव्यकरि अधस्तन अपूर्व कृष्टि करिए है। बहुरि अवशेष असंख्यात बहुभाग हैं ते अन्तर कृष्टिनिका द्रव्य हैं, याकरि अन्तर कृष्टि करिए है ।।५२८॥
बंधद्दव्वाणंतिमभागं पुण पुव्वकिट्टिपडिबद्धं । सेसाणंता भागा अंतरकिट्टिस्स दव्वं तु ॥२९॥ बंधद्रव्यानंतिमभागं पुनः पूर्वकृष्टिप्रतिवद्धं ।
शेषानंता भागा अंतरकृष्टेर्द्रव्यं तु ॥५२९॥ स० चं०-बन्ध द्रव्यकौं अनन्तका भाग दीए तहां एकभागमात्र तो पूर्व कृष्टिसम्बन्धी है, या द्रव्यकौं पूर्वं कृष्टि कहीं थीं तिनहीविर्षे निक्षेपण करिए है। बहुरि अवशेष अनन्त बहुभाग है ते अन्तर कृष्टिनिका द्रव्य है, या द्रव्यकरि नवीन अन्तर कृष्टि करिए हैं ।।५२९॥
कोहस्स पढमकिट्टी मोत्तणेकारसंगहाणं तु । बंधणसंकमदव्वादपुवकिट्टि करेदी हुँ ॥५३०।। क्रोधस्य प्रथमकृष्टि मुत्त्वा एकादशसंग्रहाणां तु ।
बंधनसंकमद्रव्यादपूर्वकृस्टि करोति हि ॥५३०॥ स० चं०-क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि विना अवशेष ग्यारह संग्रह कृष्टिनिकैं यथा सम्भव बन्ध द्रव्य अथवा संक्रमण द्रव्यतै अपूर्व कृष्टि करै है। क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिविौं संक्रमण द्रव्यके अभाव” बन्ध द्रव्यकरि ही अपूर्व करण कृष्टि करिए है ॥५३०॥
१. धवला० पु०६, पृ० ३८७ । जयध० ता० पृ० २१७४-२१७५ । २. धवला० पु० ६, पृ० ३८६ । जयध० ता० पृ० २१७२-२१७३ । ३, कोहस्स पढमसंगहकिट्टि मोत्तूण सेसाणमेक्कारसगण्हं संगहकिट्टीणं अण्णाओ अपुवाओ किट्टीओ
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