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कृष्टियोंमें द्रव्यके वटवारेकी प्ररूपणा
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स्थितिसत्त्व संख्यात हजार वर्षमात्र है। पूर्व संख्यात हजार वर्षमात्र था सो संख्यात हजार स्थिति कांडकनिकरि संख्यातगुणा घटता क्रम लीएं घटया तथापि आलापकरि संख्यात हजार वर्षमात्र ही रह्या । बहरि अघाति कर्मनिका स्थितिबंध संख्यात हजार वर्षमात्र है। इहां भी पूर्ववत् तात्पर्य जानना। बहुरि आयु बिना तीन अघातियानिका स्थितिसत्त्व असंख्यात वर्षमात्र है। यद्यपि पूर्वतै असंख्यातगुणा घटता क्रमकरि घट्या तथापि आलापकरि इतना ही रह्या । ऐसें क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिवेदकका निरूपण किया ॥ ५४० ।।
से काले कोहस्स य विदियादो संगहादु पढमठिदी । कोहस्स विदियसंगहकिटिस्स य वेदगो होदि ॥ ५४१ ॥
स्वे काले क्रोधस्य च द्वितीयतः संग्रहात् प्रथमस्थितिः ।
क्रोधस्य द्वितीयसंग्रहकृष्टश्च वेदको भवति ॥ ५४१ ॥ स० चं०-क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिवेदकका अनन्तर समयरूप अपने कालवि. क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टितै प्रदेश समूहका अपकर्षण करि उदयादि गुणश्रेणिरूप प्रथम स्थिति करै है। ताका प्रमाण क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका वेदक कालतें आवलीमात्र अधिक है । याके प्रथमादि समयनिविर्षे असंख्यातगुणा क्रम लीएं अपकर्षण कीया हुआ द्रव्य दीजिए है। बहुरि तहां ही क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका वेदक हो है ।।५४१॥
कोहस्स पढमसंगहकिट्टिस्सावलिपमाण पढमठिदी । दोसमऊणदुआवलिणवकं च वि चउउदे ताहे ॥५४२।।
क्रोधस्य प्रथमसंग्रहकृष्टरावलिप्रमाणं प्रथमस्थितिः ।
द्विसमयोनद्वयावलिनवकं चापि चतुर्दश तत्र ॥५४२॥ स० चं०-तिस समयविर्षे क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी प्रथम स्थितिविर्ष उच्छिष्टावलीमात्र निषेक अर द्वितीय स्थितिविर्षे दोय समय घाटि दोय आवलीमात्र नवक समयप्रबद्धरूप निषेक अवशेष सत्त्वरूप रहैं हैं। इन विना क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका अन्य सर्व प्रदेश क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिके नीचें अनन्तगुणा घटता अनुभागरूप होइ ताकी अपूर्व कृष्टि होइ परिणमै है । तब ही अन्य संग्रह कृष्टिनिविर्षे भी यथासंभव संक्रमण हो है । तीहिं कालविर्षे क्रोध की द्वितीय संग्रह कृष्टिका द्रव्य चौदहगुणा हो है। एकगुणा आयका था तातें तेरहगुणा प्रथम संग्रहका आया, मिलि चौदह गुणा भया ॥५४२॥
पढमादिसंगहाणं चरिमे फालिं तु विदियपहुदीणं ।
हेट्ठा सव्वं देदि हु मज्झे पुव्वं व इगिभागं ॥५४३॥ १. से काले कोहस्स विदियट्ठिदीए पदेसग्गमोकड्डियूण कोहस्स पढमट्ठिदि करेदि । ......ताहे कोहस्स विदियकिट्टीवेदगो । आदि, क.चु. पृ. ८५५-८५६ ।
२. ताधे कोधस्स पढमसंगहकिट्रीए संतकम्मं दो आवलियबंधा दुसमयूणा सेसा। जं च उदयावलियं पविद्रं तेच सेसं पढमकिट्टीए । क. चु. ५.८५६ ।
____३. जो कोहस्स पढमकिट्टि वेदयमाणस्स विधी सो चेव कोहस्स विदियकिट्टि वेदयमाणस्स विधी कायव्वो। क. चु. पृ. ८५६ ।
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