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कृष्टियोंमें द्रव्यके संक्रमणकी प्रपरूणा
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स० चं०--क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका वेदककै स्वस्थान कहिए विवक्षित कषाय ही विर्षे संक्रमण तौ तीसरी संग्रह कृष्टिपर्यंत होइ अर परस्थान कहिए अन्य कषायविर्षे संक्रमण सो आयके नीचें जो कषाय ताकी प्रथम संग्रह कृष्टिविष होइ ॥ ५४५ ।। सोई कहिए है
पढमो विदिये तदिये हेडिमपढमे च विदियगो तदिये । हेद्विमपढमे तदियो हेहिमपढमे च संकमदि ।। ५४६ ।। प्रथमो द्वितीये तृतीये अधस्तनप्रथमे च द्वितीयकस्तृतीये।
अधस्तनप्रथमे तृतीयोऽधस्तनप्रथमे च संक्रामति ॥ ५४६ ॥ स० चं०-विवक्षित कषायकी पहली संग्रह कृष्टिका द्रव्य तो अपनी दूसरी तीसरी अर नीचली कषायकी पहली संग्रहकृष्टिविर्षे संक्रमण करै है अर दूसरी संग्रहकृष्टिका द्रव्य अपनी तीसरी अर नीचली कषायकी पहली संग्रह कृष्टिविर्षे संक्रमण करै है। अर तीसरी संग्रह कृष्टिका द्रव्य नीचली कषायकी पहली संग्रहकृष्टिविर्षे ही संक्रमण करै है। इहां वेदक अपेक्षा जाकौं भोगवै है ताके पीछे जाको भोगवै ताकौं नीचलो कषाय कया है सो क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टितै प्रदेश समूह है सो क्रोधकी तीसरी मानकी पहली संग्रहकृष्टिविर्षे सक्रमण करै है। अर क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिका द्रव्यतै मानकी पहली ही विर्षे संक्रमण करै है। अर मानकी पहलीका द्रव्य मानकी दूसरी तीसरी मायाकी पहलीविषै संक्रमण कर है। अर मानकी दूसरीका द्रव्य मानकी तीसरी मायाकी पहलीविर्षे संक्रमण करें है। अर मानकी तीसरीका द्रव्य मायाकी लोभकी पहिलीविर्षे संक्रमण करै है। अर गायाकी पहलीका द्रव्य मायाकी दूसरी तीसरी लोभकी पहली विष संक्रमण कर है । अर मायाकी दूसरीका द्रव्य मायाकी तीसरी लोभकी पहलीविषै संक्रमण करै है। अर मायाकी तीसरीका द्रव्य लोभकी पहलीविष संक्रमण करै है। अर लोभकी पहलीका द्रव्य लोभकी दूसरी तीसरीविर्षे संक्रमण कर है । अर लोभकी दूसरीका द्रव्य लोभकी तीसरीविर्षे संक्रमण होइ प्रवेश करै है। इहां स्वस्थानवि तौ विवक्षित संग्रहके द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं तहां एक भागमात्र अपनी अन्य संग्रह कृष्टिविर्षे संक्रमण करै है । अर परस्थानविर्षे तिसहोकौं अधःप्रवृत्त भागहारका भाग दीएं एक भागमात्र द्रव्य अन्य कषायकी प्रथम संग्रह कृष्टिविर्षे संक्रमण करै है ऐसा विशेष जानना ।। ५४६ ।।
कोहस्स पढमकिट्टी सुण्णो ति ण तस्स अस्थि संकमणं । लोभंतिमकिट्टिस्स य णत्थि पडित्थावणणादो ॥५४७॥ क्रोधस्य प्रथमकृष्टिः शून्या इति न तस्या अस्ति संक्रमणं ।
लोभांतिमकृष्टश्च नास्ति प्रतिस्थापनमूनतः ॥५४७।। स. चं० --इहां क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टि तौ शून्य भई-नास्ति भई, तातै ताकै संक्रमण नाहीं अर लोभकी तृतीय संग्रहकृष्टिका भी संक्रमण नाही, जात प्रतिलोम जो उलटा संक्रमण ताका अभाव है । ऐसें दोय विना अवशेष दश संग्रहकृष्टिनिका संक्रमण कीया। तहां भोगवनेरूप द्वितीय संग्रहकृष्टिविष आय द्रव्यका अभाव है। तहां घात द्रव्यहोका पूर्व कृष्टिनिविर्षे देना पूर्वोक्त
१. क. चु. पृ. ८५६ । ५७
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