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कृष्टियोंमें द्रव्यके वटवारेकी प्ररूपणा
४३९ बंधांतरकृष्टि समान खंड द्रव्य है। इस द्रव्यकरि समान प्रमाण लीए बंधकी नवीन अपूर्व अंतरकृष्टि निपजै है। बहुरि पूर्वं जो बंध द्रव्यकौं अनंतका भाग देइ एक भाग जुदा राख्या था तिसतै बंधविशेष द्रव्य ग्रहि जुदा स्थापना सो कितना है ? सो कहिए है--
पूर्व अपूर्व बंध कृष्टिनिका प्रमाणमात्र इहां गच्छ सो एक गच्छका आधा प्रमाणकरि हीन जो दोगुणहानि ताकरि गुणित गच्छका भाग तिस जुदा राख्या एक भागकौं दीए एक विशेष होइ, ताकौं अपना सर्व बंध कृष्टिनिका प्रमाणकरि गुण बंधविशेष द्रव्य हो है। इस द्रव्यकौं जहाँ उभय द्रव्य विशेष द्रव्यवि. अनंतवां भाग घटाया था तहाँ देना। बहरि जुदा राख्या एक भागवि. इतना द्रव्य घटाएं जो अवशेष रह्या ताकौं अपनी सर्व बंध कृष्टिके प्रमाणका भाग दीएं एक खंड होइ ताकौं अपनी बंध कृष्टिनिका प्रमाण ही करि गुण जो द्रव्य होइ सो बंधका मध्यम खंड द्रव्य जानना । यहु द्रव्य अवशेष रया ताकौं बंधकृष्टिनिविर्षे समानरूप जहाँ उभय द्रव्यविशेष द्रव्य विर्षे एक विशेषका अनंतवां भाग घटाया तहां ही दीजिए है । भावार्थ यहु--
बंधका विशेष अर मध्यम खंडका द्रव्य दीए उभय द्रव्यका विशेषविर्ष घटाया था द्रव्य सो पूर्ण हो है। ऐसें बंध द्रव्यका विशेष विभाग जानना । अब इन संक्रमण द्रव्यका वा. बंध द्रव्य देनेका विधान कहिए है-तहाँ लोभकी तृतीय द्वितीय संग्रहकृष्टिविष तौ बंध द्रव्यका अभाव है, तातें तहां संक्रमण द्रव्यहीकौं देनेका विधान कहिए है
लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिवि पंचप्रकार द्रव्य कया। तहाँ नीचे जे अपूर्व कृष्टि करी तिनकी जघन्य कृष्टिवि. अधस्तन खंड” एक खंड अर मध्यम खंडतें एक खण्ड अर उभय द्रव्य विशेषतै सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टिमात्र विशेष ग्रहि निक्षेपण करै है सो यहु आरौं कृष्टिनिविष दीजिए है द्रव्य तातें बहुत हैं । बहुरि ताके ऊपरि द्वितीयादि अंतपर्यंत जे अधस्तन अपूर्व कृष्टि तिनविषै एक एक अधस्तन खंड अर एक एक मध्यम खंड तौ समानरूप अर उभय द्रव्य विशेषविर्षे एक एक विशेष घटता ऐसे द्रव्य दीजिए है । इहाँ अधस्तन खण्ड द्रव्य तौ समाप्त भया । बहुरि ताके ऊपरि पूर्वकृष्टिकी प्रथम कृष्टि तिसविर्षे मध्यम खंडतै एक खंड उभय द्रव्य विशेषतै जेती कृष्टि होइ आई तितनीकरि हीन सर्व कृष्टिनिका प्रमाणमात्र विशेष ग्रहि निक्षेपण करिए है । सो यहु अपूर्वकृष्टिकी अंतकृष्टिविर्षे दीया द्रव्यतै असंख्यातगुणा घटता है, जातै मध्यम खंडत अधस्तन कृष्टि, खंड असंख्यातगुणा है। अर एक उभय द्रव्य विशेष भी इहाँ घटया है। बहुरि ताके ऊपरि द्वितीयादि पूर्व कृष्टि तिनविषै एक दोय आदि एक एक बंघता अधस्तन शीर्षका विशेष अर एक एक मध्यम खण्ड अर होइ गईं कृष्टिनिकरि हीन सर्व कृष्टिप्रमाण उभय द्रव्यका विशेष क्रमतें यावत् अपकर्षण भागहारका अर्ध प्रमाणमात्र पूर्व कृष्टि होइ तावत् निक्षेपण करिए है। इहां कृष्टिनिवि मध्य एक उभय द्रव्यका विशेषविर्ष एक अधस्तन शीर्ष विशेष घटाएँ जो प्रमाण होइ तितना विशेषकरि घटता दीया द्रव्यका क्रम जानना । बहुरि तिनके ऊपरि संक्रमण द्रव्यकरि करी अपूर्व अंतरकृष्टि हैं। तीहिंविधैं अंतरकृष्टिसम्बन्धी समान खण्ड द्रव्यतै एक खण्ड अर उभय द्रव्य विशेषतै भई कृष्टिनिकरि हीन सर्व कृष्टि प्रमाणमात्र विशेषनिकौं ग्रहि निक्षेपण करै है। सो यहु नीचली पूर्व कृष्टिविषै दीया द्रव्य” असंख्यातगुणा हैं । जातै एक घाटि भई कृष्टिनिका प्रमाणमात्र पूर्व विशेष अर एक मध्यम खण्ड इनकरि हीन जो यह अंतरकृष्टिसम्बन्धी एक खण्ड है सो पूर्व कृष्टिके समान है। सो तिस दीया द्रव्यतै असंख्यातगुणा है। तहां एक उभय द्रव्यका हीनपना
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