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आय - व्यय द्रव्यकी विधिका निर्देश
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ऐसे आयत चतुरस्र क्षेत्ररूप द्रव्य देनेकरि परस्थान गोपुच्छकी सिद्धि भई । या प्रकार स्वस्थान परस्थान गोपुच्छ सम्पूर्ण हो है । बहुरि इहां सर्व मोहनीयका द्रव्य साधिक द्वयर्थं गुणहानि गुणित आदि वर्गणामात्र है ताकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं अर साधिक नवगुणा कीएं समस्त व्यय द्रव्यका प्रमाण आवै है । जातै सर्व मोहके द्रव्यकौं चौईसका अर अपकर्षण भागहारका भाग दीए एक व्यय द्रव्यका प्रमाण होइ अर पूर्वोक्त समस्त व्यय द्रव्यनिकों जोडँ दोयसै छब्बीस होंइ । तहां दो से छब्बीस गुणकारका चौईसकरि अपवर्तन कीए साधिक नवका गुणकार है । बहुरि सर्व मोहनीयके द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारके असंख्यातवां भागका भाग दीए सर्व घात द्रव्यका प्रमाण हो है । सो इस घात द्रव्यतै पूर्वोक्त व्यय द्रव्य अर आयत चतुरस्र क्षेत्ररूप जो द्रव्य ग्रहण या सोया असंख्यातवे भागमात्र है, सो घटाए' अवशेष बहुभागमात्र द्रव्य रह्या ताकौं अनंतवां भागमात्र जो एक विशेष ताकरि घटता क्रम लीएं दीजिए है । कैसे ? सो कहिए है - सर्व अवशेष घात द्रव्यका घात कोए पीछे अवशेष रही कृष्टिका प्रमाणमात्र जो गच्छ ताका भाग दीए मध्यधन हो है । बहुरि ताक एक घाटि गच्छका आधा प्रमाणकरि हीन जो दो गुणहानि ताका भाग दीए विशेषका प्रमाण हो हैं । बहुरि गच्छका एकबार संकलन घनकरि तिस चयकौं गुण उत्तरधन हो है । बहुरि याकौं तिस द्रव्य में घटाए अवशेष आदि धन हो है । ताकौं गच्छका भाग दीए एक खण्डका प्रमाण हो है । तहां एक खंडकों अर उत्तर धनतै गच्छप्रमाण अवशेषनिकौं ग्रह लोभकी जघन्य कृष्टिविर्षे दीजिए है बहुरि ताकी द्वितीय कृष्टि लगाय क्रोधकी उत्कृष्ट कृष्टिपर्यंत एक एक खंड समानरूप अर उत्तर धनविषै एक एक विशेष घटता दीजिए है । अर ऐसे अवशेष घात द्रव्य सर्व समाप्त हो है । ऐसें होतं सर्वत्र एक गोपुच्छ हो है ।। ५२६ ।।
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उदयगदसंगहस्स य मज्झिमखंडादिकरणमेदेण ।
दवे होदि णियमा एवं सव्र्व्वसु समयेसु ॥ ५२७ ।।
उदयगतसंग्रहस्य च मध्यमखंडादिकरणमेतेन ।
द्रव्येण भवति नियमादेवं सर्वेषु समयेषु ॥ ५२७ ॥
स० चं - उदयकों प्राप्त जो संग्रह कृष्टि ताका इस घात द्रव्य ही करि मध्यम खंडादिक करना हो है । भावार्थ - जिस संग्रह कृष्टिकों वेदे हे ताविषै आय द्रव्यका अभाव है । तातैं संक्रमण द्रव्यकरि की तौ मध्यम खंडादिक होइ नाहीं । तातै मध्यम खंड उभय द्रव्य विशेष इत्यादि वक्ष्यमाण विधान करनेके अर्थ तिस भोगवनेरूप संग्रह कृष्टिनिका घात द्रव्य तै ताका असंख्यातवां भागमात्र द्रव्यकौं जुदा स्थापि अवशेष घात द्रव्य हीकों पूर्वोक्त प्रकार विशेष घटता क्रम लीएं एक गोपुच्छाकारकरि दीजिए है। एक भागका आगे मध्यम खंडादि विधानते द्रव्य देना कहेंगे सो जानना । ऐसैं समय २ प्रति सर्व समयनिविषं विधान हो है ।
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या प्रकार घात द्रव्यकरि एक गोपुच्छ भया । अब जो अन्य संग्रहका विवक्षित संग्रहविष द्रव्य आया ताकौं पूर्वं आय द्रव्य कह्या था ताका नाम इहां संक्रमण द्रव्य कहिए । बहुरि जो नवीन समयप्रबद्धविषै द्रव्य बंधिकरि कृष्टिरूप हो है सो बंध द्रव्य कहिए । ताका विधान कैसे है ? सो कहिए है
केता इक संक्रमण द्रव्य अर बंध द्रव्यकरि केती इक नवीन अपूर्व कृष्टि करिए है । तहां
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