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क्षपणासार
बहुरि लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिका द्रव्य लोभकी द्वितीय तृतीय संग्रह कृष्टिविषै गया, तातें ताक व्यय द्रव्य दोय हैं । बहुरि लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका द्रव्य लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिविषै गया, तातैं ताकेँ व्यय द्रव्य एक है । बहुरि लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिका द्रव्य अन्यत्र न जाय है, जातैं विपरीत संक्रमणका अभाव है तातें ताकेँ व्यय द्रव्य नाही है । ऐसें व्यय द्रव्यका विभाग कह्या ।। ५२२ ॥
विशेष—अंक संदृष्टिकी अपेक्षा मोहनीयका भाग करनेपर उनमें से असंख्यातवें भागसे अधिक और असंख्यातवाँ भाग हीन एक भाग नोकषायोंका द्रव्यको १२ संग्रह कृष्टियों में विभाजित करनेपर क्रोधकी होता है जो २ अंक प्रमाण है । वह मोहनीयके पूरे द्रव्यकी होता है । अंक दृष्टिकी अपेक्षा वह २ अंक प्रमाण है । संज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिमें संक्रमित होता है, क्योंकि परिणमन देखा जाता है । अतएव नोकषायके समस्त द्रव्यके साथ क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका कुल द्रव्य ( २४ + २ = २६ ) अंक प्रमाण हो जाता है । इसे क्रोधकी द्वितीय संग्रह कृष्टिके २ अंक प्रमाण द्रव्यसे भाजित करने पर २६ ÷ २ = १३ होता है, इसीलिये क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि द्रव्य को उसीकी दूसरी संग्रह कृष्टिकी अपेक्षा १३ गुणा कहा है ।
पूरा द्रव्य ४९ अंक प्रमाण हैं । पुनः इसके दो एक भाग चारों संज्वलन कषायों का द्रव्य है द्रव्य है । उसका प्रमाण २४ है । कषायके प्रथम संग्रह कृष्टिको १२वाँ भाग प्राप्त अपेक्षा कुछ कम २४ वें भाग प्रमाण किन्तु नोकषायका समस्त द्रव्य क्रोध उसका वेदककी प्रथम संग्रह कृष्टिरूपसे
आ अनुसमय अपवर्तनकी प्रवृत्तिका क्रम कहिए है
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पडिसमयमसंखेज्जदिभागं णासेदि कंडयेण विणा । बारससंगह किट्टीणग्गदो किट्टवेदगो णियमा ।। ५२३ ।।
प्रतिसमय मसंख्येयभागं नाशगति कांडकेन विना ।
द्वादशसंग्रह कृष्टीनामग्रतः कृष्टिवेदको नियमात् ।। ५२३ ।।
स० चं - कृष्टिवेदक जीव है सो कांडक बिना बारह संग्रह कृष्टिनिका अग्रभागते सर्व कृष्टिनिके असंख्यातवें भागमात्र कृष्टिनिकों नष्ट करे है नियमतें । भावार्थ - कृष्टिकरण कालका अंत समयपर्यंत तो अंतर्मुहूर्त कालकरि निष्पन्न जो कांडक विधान ताकरि अनुभागका नाश होता था अब कृष्टि भोगनेका प्रथम समयत लगाय समय समय प्रति अग्रयात होने लगा । तहां बारह संग्रह कृष्टिनिका जे अंतर कृष्टि तिनविषै अंत कृष्टितें लगतीं जे बहुत अनुभाग युक्त ऊपरिकी के इक कृष्टि तिनका नाशकरि तिनि कृष्टिनिके द्रव्यकौं स्तोक अनुभाग यक्त नीचली कृष्टिनिविषै निक्षेपण करिए है । तहां जिनि कृष्टिनिका नाश कीया तिनिका नाम घात कृष्टि है सो अपनी अपनी संग्रह कृष्टिविषै अन्तर कृष्टिनिका प्रमाण स्थापि ताकों अपकर्षण भागहारके असंख्यातवें भागमात्र जो असंख्यात ताका भाग दीएं अपनी अपनी घात कृष्टिनिका प्रमाण आवे है ।
१. मु० प्रतौ पडिसमयं संखेज्जदिभागं इति पाठः ।
२. किट्टीणं पढमसभयवेदगो बारसहं पि संगहकिट्टीणमग्गकिट्टिमादि काढूण एक्के किस्से संगहकिट्टीए असंखेज्जदिभागं विणासेदि । क० चु० पृ० ८५२ ।
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