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क्षपणासार
अब संक्रमण द्रव्यका विधान कहिए है
संकमदि संगहाणं दो सगहेट्ठिमस्स पढमो त्ति । तदणुदये संखगुणं इदरेसु हो जहाजोग्गं ॥५२२।। संक्रामति संग्रहाणां द्रव्यं स्वकाधस्तनस्य प्रथम इति ।
तदनूदये संख्यगुणमितरेषु भवेत् यथायोग्यम् ॥५२२॥ स० चं० - संग्रह कृष्टिनिका द्रव्य है सो विवक्षित स्वकीय कषायके नीचें जो कषाय ताकी प्रथम संग्रह कृष्टिपर्यंत संक्रमण करै है। भावार्थ यह-जो स्वस्थानविष विवक्षित कषायकी संग्रह कृष्टिका द्रव्य तिस ही कषायकी अन्य संग्रह कृष्टिविर्षे संक्रमण करै तौ तीसरी संग्रह कृष्टिपर्यन्त करै । अर परस्थानविय जो अन्य कषायविर्षे संक्रमण करै तौ तिस विवक्षित कषायतें लगती जो कषाय ताकी प्रथम संग्रह कृष्टिविषं संक्रमण करै । जो द्रव्य जिसवि संक्रमण करै सो द्रव्य तिस ही रूप परिणमै है। तहाँ जिस संग्रह कृष्टिकौं भोगवै है ताका अपकर्षण कीया हुआ द्रव्यतै ताके अनन्तरि भोगने योग्य जो संग्रह कृष्टि तिसविर्षे संख्यातगुणा द्रव्य संक्रमण हो है। औरनिविषै यथायोग्य संक्रमण हो है । सोई कहिए है
जैसैं प्रवृत्तिविषै जमा-खरच कहिए तैसैं इहां आय द्रव्य व्यय द्रव्य कहिए है। जो अन्य संग्रह कृष्टिनिका द्रव्य संक्रमण करि विवक्षित संग्रह कृष्टि विर्षे आया--प्राप्त भया ताका नाम आय द्रव्य है। बहुरि विवक्षित संग्रह कृष्टिका द्रव्य संक्रमण करि अन्य संग्रह कृष्टिनिविर्षे गया ताका नाम व्यय द्रव्य है। बहरि इहां क्रोधका प्रथम संग्रह कृष्टि बिना अन्य ग्यारह संग्रह कृष्टिनिका अपना-अपना जो द्रव्य ताकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं जो एक मात्र द्रव्य संक्रमण करै है सो एक द्रव्य कहिए है। बहुरि क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं जो एक भागमात्र द्रव्य संक्रमण करै सो तेरह द्रव्य कहिए है, जातें अन्य संग्रह कृष्टिका द्रव्य क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका द्रव्य नोकषायके द्रव्य मिलनेत तेरहगुणा है। तहां लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिवि. लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टि अर द्वितीय संग्रह कृष्टिका अपकर्षण कीया द्रव्य संक्रमण करै है, तातै ताक आय द्रव्य दो है। बहुरि लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिविर्षे लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिका ही अपकर्षण कीया द्रव्य संक्रमण करै है,
१. कोहविदियकिट्टीदो पदेसग्गं कोहतदियं च माणपढमं च गच्छदि । कोहस्स तदियादो किट्टीदो माणस्स पढमं चेव गच्छदि । माणस्स पढमादो किट्टीदो माणस्स विदियं तदियाए मायाए पढमं च गच्छदि । माणस्स विदियकिट्रीदो माणस्स तदियं च मायाए पढमं च गच्छदि। माणस्स तदियकिट्टीदो मायाए पढमं गच्छदि। मायाए पढमादो पदेसग्गं मायाए विदियं तदियं च लोभस्स पढमं किट्टिं च गच्छादि मायाए विदियादो किट्टीदो पदेसगं मायाए तदियं लोभस्स पढमं च गच्छदि । मायाए तदियादो किट्टीदो पदेसग्गं लोभस्स पढमं गच्छदि। लोभस्स पढमादो किट्टीदो पदेसरगं लोभस्स विदियं च तदियं च गच्छदि । लोभस्स विदियादो पदेसरगं लोभस्स तदियं गच्छदि । क. चु० पृ० ८५६ ।
२. कोहस्स विदियाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं थोवं । पढमाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं संखेज्झगुणं, तेरसगुणमेतं.....। क० चु० पृ० ८११-८१२ ।
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