________________
कृष्टिकारककी प्रथम समयसम्बन्धी प्ररूपणा
४०९
तृतीय कृष्टिकी उत्कृष्ट कृष्टिका द्रव्य एक घाटि कृष्टि प्रमाणमात्र विशेषनिकरि घटता भय सो अनंतवां भागमात्र घटता भया जानना । जातै सर्व कृष्टिनिका प्रमाण एक स्पर्धककी वर्गणाके अनंतवें भागमात्र है सो एक घाटि इतने चय घटनेत लोभकी जघन्य कृष्टि का द्रव्यके अनंतवें भागमात्र ही द्रव्य घटता भया है। बहुरि पूर्व अपूर्व स्पर्धकनिविषै जो देने योग्य द्रब्य कह्या था ता साधक द्वय गुण हानिका भाग दीएं अपूर्व स्पर्धकको आदि वर्गणाविषै दीया द्रव्यका प्रमाण हो है । सो यहु क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी अंत कृष्टिविषै दीया द्रव्यके असंख्यातवें भागमात्र है । बहुरि तिसर्त तिनको द्वितीय वर्गणा आदि पूर्व स्पर्धकनिकी अंत वर्गणा पर्यंतनिविषै विशेष घटता क्रम करि द्रब्य दीजिए है । ऐसें कृष्टिकारकका प्रथम समयका निरूपण जानना || ५०१ ||
पडिसमयमसंखगुणं कमेण ओकड्डिदूण दव्वं खु । संगापासे अव्वकिट्टी करेदी हु ||५०२ |
प्रथमसमयमसंख्यगुणं क्रमेणापकृष्य द्रव्यं खलु । संग्रहाधस्तनपार्श्वे अपूर्वकृष्टि करोति हि ॥ ५०२॥
स० चं - - बहुरि प्रथम समयतें द्वितीयादि समयनिविषै असंख्यातगुणा क्रम लीएं द्रव्यकौं अपकर्षणकरि संग्रह कृष्टिके नीचें वा पार्श्वविषै अपूर्व कृष्टिकों करे है । पूर्व समयविषै जे कृष्टि करी थीं तिनविषे बारह १२ संग्रह कृष्टिनिकी जे जघन्य कृष्टि तिनतें अनंतगुणा घटता अनुभाग लए नीचे केती इक नवीन कृष्टि अपूर्व शक्तियुक्त करिए है । याहीतैं इनका नाम अधस्तन कृष्टि जानना | बहुरि पूर्व समयनिविषै जे कृष्टि करी थीं तिनहोके समान शक्ति लीए तिनके पास hat कृष्टि करिए है । भावार्थ यहु - पूर्व समयनिविष करी कृष्टिनिविषै जो नवीन द्रव्थका निक्षेपण करिए सो पार्श्वविषै करी कृष्टि कहिए है ||५०२||
ट्ठा असंखभागं पासे वित्थारदो असंखगुणं । मज्झिमखंडं उभयं दव्वविसेसे हवे पासे || ५०३ ।।
Jain Education International
अधस्तनम संख्यभागं पावें विस्तारतोऽसंख्यगुणं । मध्यमखंडमुभयं द्रव्यविशेषे भवेत् पार्श्वे ॥ ५०३॥
स० चं - संग्रह कृष्टि के नीचें करी हुई कृष्टिनिका प्रमाण तो सर्व कृष्टिनिका प्रमाणके असंख्यातवें भागमात्र है । बहुरि पार्श्वविषै करी हुई कृष्टिनिका प्रमाण तिनतें असंख्यातगुणा है । तहाँ पार्श्वविषै करी कृष्टि तिनविषै मध्यम खंड अर उभय द्रव्यविशेष हो हैं । अर स्तोक जानि न ह्या तथापि तहां अधस्तन शीर्षका भी होना जानना । कैसे ? सो कहिए है
द्वितीयादि समयनिविषे समय समय प्रति असंख्यातगुणा द्रव्यकों पूर्व अपूर्व स्पर्धकसम्बन्धी द्रव्य अपकर्षणकरि तहां पूर्व अपूर्व स्पर्धकनिविषे देने योग्य द्रव्य जुदा कीएं अवशेष कृष्टिसम्बंधी
१. विदियसमए अण्णाओ अपुव्वाओ किट्टीओ करेदि पढमसमए णिव्यत्तिदकिट्टीणमसंखज्जदिभागमेत्ताओ। एक्किवके संग किट्टीए हेद्रा अपुवाओ किट्टीओ करेदि । क० चु० पृ० ८०१ |
५२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org