________________
४०७
कृष्टियोंके गुणकारोंके प्रमाणका निर्देश पैंतीस रहे सो पैतीस वार दोयकौं दोय करि गुणे सोलहगुणा बादाल प्रमाण हो है । बहुरि इहांतें स्वस्थान गुणकार छोडि बाहुरि करि लोभकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी अन्त वर्गणाकौं जिस गुणकार करि गुणें द्वितीय संग्रह कृष्टिकी प्रथम वर्गणा होइ सो परस्थान गुणकार पूर्वोक्त अन्तका स्वस्थान गुणकारतें अनन्तगुणा है। ताकी संदृष्टि बत्तीसगुणा बादाल है। बहुरि लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिकी अन्त कृष्टिकों जिस गुणकार करि गुण लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी प्रथम कृष्टि होइ सो द्वितीय परस्थान गुणकार सो प्रथम परस्थान गुणकारत अनन्तगुणा है । बहुरि लोभकी तृतीय कृष्टिकी अन्त कृष्टिकौं जिस गुणकार करि गुणें मायाकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी प्रथम संग्रह कृष्टि होइ सो तीसरा परस्थान गुणकार द्वितीय परस्थान गुणकारतें अनन्तगुणा है । याही प्रकार ग्यारह परस्थान गुणकारनिकौं क्रमः अनन्तकरि गुणें क्रोधकी द्वितीय कृष्टिकी अन्त कृष्टिकौं जिस गुणकार करि गुण क्रोधकी तृतीय कृष्टिकी प्रथम कृष्टि होइ तिस गुणकार प्रमाण आवै है।
यह गुणकारनिका यन्त्र है तहां पण्णदीकी संदृष्टि ऐसी ६५ = बादालकी ऐसी ४२ = अर इनके आगें जितनेका अंक तितनेका इनकौं गुणकार जानना।
नाम
लोभ
माया ।
मान
__क्रोध
५१२
६५-४
तृतीय संग्रहकृष्टिविषै स्वस्थान गुणकार
६५ -२
६५ - २०४८ ४२ = १६ ६५ = १०२४ ४२ = ८ ६५ = ५१२ - ४२-४
१२८
परस्थान गुणकार
|४२=६४ ४२ = ५१२
४२ = ४०९६ | ४२ = ३२७६८
द्वितीय संग्रहकृष्टिविषै स्वस्थान
गुणकार
३२७६८ ६५ = २५६ ४२ =२ ३२ । १६३८४ । ६५ = १२८४२ = १ १६ । ८१९२ । ६५ = ६४ ६५ = ३२७६८
परस्थान गुणकार
४२–३२ ४२ = २५६ ४२ = २०४८
४२ = १६३८४
प्रथम संग्रहकृष्टिविषै स्वस्थान गुणकार
४०९६ १२२ २०४८ ६५ = १६ १०२४ । ६५ ०८
६५ = १६३८४
अपूर्व स्पर्धक ६५ % ८१९२ । ६५८४०९६
वर्गणा गुणकार
परस्थान गुणकार | जघन्य ४२ = १२८, ४२ = १०२४ | | ४२ = ८१९२ | ४२ = ६५ =
अंकसंदृष्टिकरि ग्यारह परस्थान गुणकारनिकौं दूणा २ कीएं जैसै बत्तीस हजार सातसै अडसठिगुणा बादाल प्रमाण होइ । बहुरि यातॆ तिस गुणकार करि क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिकी अंत कृष्टिकौं गुणें लोभके अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके अनुभागका अविभाग प्रतिच्छेदनिका प्रमाण हो है। तिस परस्थान गुणकारका प्रमाण अनंतगुणा जानना। ताकी संदृष्टि पण्णट्ठीगुणा बादाल है । ऐसें गुणकारनिका प्रमाण कहया। इहां ऐसा अर्थ जानना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org