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द्वितीयादि समयोंमें कितनी और किन कृष्टियोंका उदयादि होता है इसका निर्देश ४२३ अधिक हैं । यहाँ भी विशेषका प्रमाण पहलेके समान जानना चाहिये । यहाँ पूर्वोक्त अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागप्रमाण कृष्टियोंको छोड़कर उदय और बंधको प्राप्त होनेवाली शेष समस्त मध्यम कृष्टियाँ पूर्वोक्त कृष्टियोंसे असंख्यातगुणी हैं। यहाँ गुणकार तत्प्रायोग्य पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
विदियादिसु चउठाणा पुग्विल्लेहिं असंखगुणहीणा । तत्तो असंखगुणिदा उवरिमणुभया तदो उभयो ।। ५१८ ॥ द्विती यादिसु चतुःस्थानानि पूर्वेभ्योऽसंख्यगुणहीनानि ।
ततः असंख्यगुणितानि उपर्यनुभयानि तत उभयानि ।। ५१८ ।। स० चं०-अब कृष्टिकरण कालका द्वितीयादि समयनिविषै कहिए है-पूर्व समयविषै जे नीचली वंध रहित केवल उदय कृष्टि थीं ते तो उत्तर समयविषै उभय कृष्टिरूप हो है। अर पूर्व समयविषै अनुभय कृष्टि थीं तिनविषै अंतकी केते इक कृष्टि उभयरूप तिनते नीचली केती इक केवल उदयरूप उत्तर समयविषै हो हैं। बहुरि पूर्व समयविषै जे ऊपरिकी केवल उदय कृष्टि थीं ते सर्व उत्तर समयविर्षे अनुभयरूप हो हैं । बहुरि पूर्व समयविर्ष जे उभय कृष्टि थों तिनविषै अंतकी केती इक कृष्टि अनुभयरूप तिनतें नीचं केती इक केवल उदयरूप कृष्टि उत्तर समयविष हो हैं । ऐसे समय समय प्रति बंध अर उदयविष अनुभागका घटना हो है जात नीचली कृष्टिनिविषै अनुभाग स्तोक पाइए है, ऊपरिकी कृष्टिनिविषै अनुभाग बहत पाइये है। ऐसे होते अल्पबहत्व कहिए है
नीचेकी अनुभय कृष्टि तौ स्तोक हैं तातै तिनके ऊपरि जे नीचली केवल उदय कृष्टि ते विशेष अधिक हैं। तातै परै उपरि पूर्व समयविषै जो उत्कृष्ट अनुभाग लीएं अंतकी बंधरूप कृष्टि थीं तातें लगाय नीचे जे उत्तर समयविर्षे अनुभय कृष्टि भई ते विशेष अधिक हैं। तातै तिनके नीचे जे विवक्षित समयवि केवल उदयरूप कृष्टि भई ते विशेष अधिक हैं। ऐसे ए च्यारि स्थान तौ पूर्व समयविषै नीचलो अनुभय कृष्टि आदिका प्रमाण जो था तातें असंख्यातगुणे घाटि हैं। बहुरि तिन उदय कृष्टिनितें पूर्व समयविर्ष जो ऊपरिकी उदय कृष्टि थीं तिनविष स्तोक अनुभाग लीएं जो आदिकी जघन्य कृष्टि तीहि समान कृष्टिनै लगाय जे उत्तर समयविष सर्व अनुभय कृष्टि भईं ते असंख्यातगुणी हैं। जातें पूर्व समयविषै जो ऊपरिकी अनुभय कृष्टिनिका प्रमाण था ताके असंख्यातवे भागमात्र कृष्टि पूर्व समयसंबधी ऊपरिकी जघन्य उदय कृष्टिनै नीचें उत्तरोत्तर समय
परिकी जघन्य अनुभय कृष्टि हो हैं। बहरि तातै पूर्व समयसंबंधो ऊपरिको उदय कृष्टिनिका प्रमाणके असंख्यातवें भागमात्र कृष्टि नीचे उतरै इस विवक्षित समयविषै ऊपरिकी जघन्य उदय कृष्टि हो हैं। बहुरि तिन अनुभय कृष्टिनिका प्रमाणसे वीचिविष जे बंध उदय युक्त उभय कृष्टि हैं ते असंख्यातगुणी हैं। ऐसे द्वितीयादि समयनिविषै कृष्टिनिका अल्पबहुत्व जानना ।।५१८॥
विशेष-उत्तरोत्तर परिणामोंमें विशुद्धि होते जानेके कारण एक तो सत्तामें स्थित अनु
१. पडमसमयकिट्टीवेदगस्स कोधकिट्टी उदए उक्कस्सिया बहुगी। बंधे उक्कस्सिया किटी अणंतगणहीणा । विदियसमये उदए उक्कस्सिया किट्टी अणंतगुणहीणा । बंधे उक्कस्सिया किट्री अणंतगणहीणा । एवं सव्विस्से किट्टीवेदगद्धाए । घ० पु० ६, पृ० ३८४ ।
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