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देशघातिकरण निर्देश
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सं० चं-यातें ऊपरि पृथक्त्व कहिए संख्यात हजार स्थितिबन्ध व्यतीत भएँ निद्रा-निद्रा १ प्रचला-प्रचला १ स्त्यानगृद्धि १ ए तीन दर्शनावरणकी अर नरक-तिर्यंचगति वा आनुपूर्वी च्यारि ४ एकेंद्रियादि च्यारि जाति ४ आतप १ उद्योत १ स्थावर १ सूक्ष्म १ साधारण १ ए तेरह नामकर्मकी ऐसैं सोलह प्रकृतिनिका संक्रमक हो है। क्षपणा प्रारंभका समयतें लगाय समय-समय प्रति इनके द्रव्यकौं पूर्वोक्त प्रकार एक फालिका संक्रमण होते प्रथम कांडक होइ ऐसैं संख्यात हजार स्थितिकांडकनिकरि संक्रमण हो है। तहाँ अंत कांडक घात होते अवशेष स्थितिसत्त्व काल अपेक्षा आवलीमात्र निषेक अपेक्षा समय घाटि आवली मात्र रहै है। ऐसैं इनका उदयावलीत बाहय सर्व निषेक द्रव्यनिका द्रव्य है स्वजाती अन्य प्रकृतिनिविर्षं संक्रमण होइ क्षयकौं प्राप्त हो है । अपनी जातिकी अन्य प्रकृतिनिकौं स्वजाती कहिए है । जैसैं स्त्यानगृद्धित्रिकको स्वजाती दर्शनावरणकी अन्य प्रकृति हैं ऐसे अन्य जाननी। बहुरि यहांत लगाय पृथक्त्व शब्दका अर्थ संख्यात हजार जानना । या प्रकार इहां मोहको तो आठका नाश भएं तेरहका सत्त्व रहया अर दर्शनावरणकी तीनका नाश भएं छहका सत्त्व रहया अर नामकी तेरहका नाश भएं असी प्रकृति का सत्त्व रहया । ज्ञानावरण वेदनीय गोत्र अंतरायनिविर्षे किसी प्रकृतिका नाश न भया ।।४३०॥ आरौं देशघाति करण कहिए है
ठिदिबंधपुधत्तगदे मणदाणा तत्तिये वि ओहिदुगं । लाभं च पुणो वि सुदं अचक्खुभोगं पणो चक्खु ॥४३१।। पुणरवि मदिपरिभोगं पुणरवि विरयं कमेण जणुभागो । बंधेण देसघादी पल्लासंखं तु ठिदिबंधो' ॥४३२।। स्थितिबंधपृथक्त्वगते मनोदाने तावत्यपि अवधिद्विकम् । लाभश्च पुनरपि श्रुतं अचक्षुभोगं पुनः चक्षुः ॥४३१॥ पुनरपि मतिपरिभोगं पुनरपि वीय क्रमेण अनुभागः ।
बंधन देशघातिः पल्यासंख्यस्तु स्थितिबंधः ।।४३२।। स० चं-मनःपर्यय आदि बारह प्रकृतिनिका पूर्व सर्वघाती द्विस्थानगत अनुभागबंध होता था इहांतें परै देशघाति दारु लतारूप द्विस्थानगत अनुभागबंध होने लगा सो देशघातीकरण है । सोई कहिए है
सोलह प्रकृति संक्रमण” परै पृथक्त्व संख्यात हजार स्थितिकांडक भएं मनःपर्यय ज्ञानावरण अर दानांतरायका बहुरि तितने स्थितिकांडक व्यतीत भए अवधिज्ञानावरण अवधिदर्शना
१. तदो छिदिखंडयपुधत्तेण मणपज्जवणाणावरणीय-दाणंतराइयाणं च अणुभागो बंधेण देसघादी जादो। तदो द्विदिखंडयपुधत्तण ओहिणाणावरणीय-ओहिदंसणावरणीय-लाहंतराइयाणमणुभागो बंधण देसघादी जादो। तदो छिदिखंडयपुधत्तेण सुदणाणावरणीय-अचक्खुदंसणावरणीयभोगन्तराइयाणमणुभागो बंधेण देसघादी जादो । तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्तण चक्खुदंसणावरणीयअणुभागो बंधेण देसघादी जादो। तदो टिठदिखंडयपुधत्तण आभिणिबोहियणाणावरणीयपरिभोगतराइयाणमणुभागो बंधेण देसघादी जादो। तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्तेण वीस्थितराइयस्स अणुभागो बंधेण देसघादी जादो । क० चु० पृ० ७५१-७५२ ।
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