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अपूर्व स्पर्धक करने की विधि
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भाग देने पर जो असंख्यातवां भाग लब्ध आवे उसे ग्रहण कर उसमें स्थित पूर्वस्पर्धकों के प्रथम देशघाति स्पर्धकके नीचे उसके अनन्तवें भागमें अन्य अपूर्व स्पर्धक बनाता है जो कि अनन्त होकर भी एक गुणहानि स्थानान्तरके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होते हैं । पूर्व स्पर्धकोंकी आदि वर्गणा एक-एक वर्गणाविशेषसे हीन होती हुई जहाँ जाकर दुगुनी हीन होती है उसे एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर कहते हैं, जो कि अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र स्पर्धकोंको लिए हुए होती हैं । इस एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर के भीतर जितने स्पर्धक होते हैं उनके असंख्यातवें भागमात्र ये अपूर्व स्पर्धक होते हैं ऐसा यहाँ समझना चाहिये । अपकर्षण- उत्कर्षण भागहारसे असंख्यातगुणे भागहारके द्वारा एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके भीतर प्राप्त स्पर्धकोंभाजित करनेपर जो प्रमाण लब्ध आवे उतने होते हैं । इस प्रकार जो जघन्य अपूर्व स्पर्धक प्राप्त होते हैं उनसे उत्कृष्ट अपूर्व स्पर्धक अनन्तगुणे होते हैं । यह इस गाथाका भाव है ।
पुव्वाण फड्ढयाणं छेत्तूण असंखभागदव्वं तु । कोहादीणमपुव्वं फयमिह कुणदि अहियकमा || ४६८॥
पूर्वान् स्पर्धकान् छित्वा असंख्य भागद्रव्यं तु । क्रोधादीनामपूर्व स्पर्धकमिह करोति अधिकक्रमं ॥ ४६८॥
स० चं - संज्वलन क्रोध मान माया लोभके पूर्व स्पर्धकनिका जो सर्व द्रव्य ताक अपकर्षण भागहारमात्र असंख्यातका भाग दीएं तहां एक भागमात्र द्रव्यकों ग्रहि इहां अपूर्व स्पर्धक करै है । सोई कहिए है
स्थितिसम्बंधी गुणहानि गुणित समयप्रबद्धमात्र मोहनीयका देशघाती द्रव्य है, जातें मोहके सर्वघाती द्रव्यका इहां अभाव है। ताक अनुभागसंबंधी किंचित् अधिक द्वयर्धगुणहानिका भाग दीएं प्रथम वर्गणा होइ, तातैं प्रथम वर्गणाकौं किंचित् अधिक ड्योढ गुणहानिकरि गुणै मोहनीयके सर्व द्रव्यका प्रमाण हो है । ताक आवलीका असंख्यातबां भागका भाग देइ तहां एक भाग जुदा राखि बहुभागनिके समान दोय भाग करिए। तहां एक भाग समान भागविषै जुदा राख्या, एक भाग मिलाएं कषायनिका द्रव्य साधिक आधा है । बहुरि एक समान भागमात्र नोकषायनिक द्रव्य किचिदून आधा है। तहां कषायनिके द्रव्यकौं आवलीका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां एक भाग जुदा राखि बहुभागनिके च्यारि समान भाग करने, बहुरि जुदा राख्या एक भागको आवलीका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागनिको प्रथम समान भागविषै जो लोभका द्रव्य हो है । बहुरि अवशेष एक भागक आवलीका असंख्यातवां भागका भाग देइ बहुभाग द्वितीय समान भागविषै जोडें मायाका द्रव्य हो है । बहुरि अवशेष एक भागकौं आवलीका असंख्यातवां भागका भाग देइ बहुभाग तृतीय समान भागविषै मिलाएं क्रोधका द्रव्य हो है । बहुरि अवशेष एक भागको चतुर्थ समान भागविषै मिलाएं मानका द्रव्य हो है । बहुरि नोकषाय
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१. पढमसमए जाणि अपुव्वफद्दयाणि णिव्वत्तिदाणि तत्य कोधस्स थोवाणि, माणस्स अपुव्वफद्दयाणि विसेसाहियाणि, मायाए अपुव्वफद्दयाणि विंसेसाहियाणि, लोभस्स अपुव्वफद्दयाणि विसेसाहियाणि । विसेसो अनंतभागो । क० चु० पृ० ७९१ ।
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