Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 482
________________ कृष्टियों में स्पर्धकों में द्रव्यके विभागका निर्देश ४०३ भागमात्र क्रोध की कृष्टिनिका प्रमाण हो है । बहुरि अवशेष एक भाग चौथा समान भागविषै मिलाएं किंचिदून चौथा भागमात्र मानकी कृष्टिनिका प्रमाण हो है । बहुरि नोकषायनिसम्बन्धी कृष्टिनिका प्रमाण क्रोधकी कृष्टिनिका प्रमाणविषै जोडना । ऐसें सर्व कृष्टिनिका प्रमाणकौं आठका भाग देइ तहां एक एक भागमात्र लोभ माया मानकी, पांच भागमात्र क्रोधकी कृष्टिनिका प्रमाण हो है । तहां लोभकीविषं साधिकपना अन्यकोविषे किंचित् न्यूनपना यथासम्भव जानना । बहुरि क्रोधी कृष्टिनिविषे नोकषायसम्बन्धी कृष्टि जुदो कीए अवशेष अपना अपना कृष्टिनिका जो प्रमाण ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागके समान तीन भाग करिए । बहुरि अवशेष एक भागको पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभाग प्रथम समान भागविषै मिलाएं अपना अपना प्रथम संग्रह कृष्टिका आयाम साधिक हो है । वहुरि अवशेष एक भागको पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभाग द्वितीय समान भागविषै जोडें अपना अपना द्वितीय संग्रह कृष्टिका आयाम किंचित् ऊन हो है । बहुरि अवशेष एक भाग तीसरा समान भागविषै जोडें अपनी अपनी तृतीय संग्रह कृष्टिका आयाम किंचित् ऊन हो है । बहुरि नोकपराय सम्बन्धी कृष्टिनिक प्रमाण ताकौं क्रोधकी तृतीय संग्रहकृष्टिका आयामविषै जोडना । ऐसें सर्व कृष्टिनिका प्रमाणक चौईसका भाग देइ तहां क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिका आयाम तेरह भागमात्र अन्य ग्यारह संग्रह कृष्टिनिका आयाम एक भागमात्र हो है । तहां लोभकीविषै साधिकपना अन्यत्र किंचित् न्यूनपना यथासम्भव जानना । इहां संग्रह कृष्टिविषै जितनी अन्तर कृष्टिका प्रमाण होइ तीहिका नाम संग्रह कृष्टिका आयाम है ।। ४९५ || पढमादिसंगहाओ पल्ला संखेज्जभागहीणाओ । कोहस्स तदीया अकसायाणं तु किट्टीओ' ।। ४९६।। प्रथमादिसंग्रहाः पल्या संख्येयभागहीनाः । क्रोधस्य तृतीयायामकषायानां तु कृष्टयः ॥ ४९६ ॥ स० चं० – पूर्वोक्त प्रकार करि प्रथम आदि बारह संग्रह कृष्टिनिका आयाम है सो का असंख्यातवां भागका क्रमकरि घटता जानना । बहुरि नोकषायसम्बन्धी सर्व कृष्टितं क्रोधकी तृतीय संग्रह कृष्टिविषै प्राप्त जानना ||४९६ ॥ Jain Education International कोहस् य माणस य मायालोभोदएण चडिदस्स । बारस णव छत्तिणि य संगहकिड्डी कमे होंति ॥ ४९७ ॥ क्रोधस्य च मानस्य च मायालोभोदयेन चटितस्य । द्वादश नव षट् त्रीणि च संग्रहकृष्टयः क्रमेण भवंति ॥ ४९७ ॥ स० चं - संज्वलन क्रोधका उदय सहित जो जीव श्रेणी चढ़े ताकेँ तो व्यारथो कषायनिकी बारह संग्रह कृष्टि हो हैं । बहुरि मानका उदय सहित श्रेणी चढ़े ताकेँ क्रोधका पहिले ही संक्रमण करि क्षय होइ, तातें अवशेष तीन कषायनिकी नव संग्रह कृष्टि हो हैं । बहुरि मायाका उदय सहित जो श्रेणी चढ़े ताकेँ क्रोध मानका पहले ही संक्रमणकरि क्षय होइ, तातैं दोय कषायनिकी छह संग्रह कृष्टि हो हैं । बहुरि लोभका उदय सहित जो श्रेणी चढ़े ताकेँ क्रोध मान मायाका १. क० गा० १६३ । २. क० गा० १६५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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