________________
कृष्टिकरणप्ररूपणा
३९९
ठिदिसत्तमघादीणं असंखवस्साण होति घादीणं । वस्साणं संखेज्जसहस्साणि हवंति णियमेण' ।।४८९।। स्थितिसत्त्वमघातिनामसंख्यवर्षा भवंति धातिनाम् ।
वर्षाणां संख्येयसहस्राणि भवंति नियमेन ॥४८९॥ स० चं-बहरि तिस ही अंत समयविर्षे अघातिया नाम गोत्र वेदनीय तिनका स्थितिसत्त्व असंख्यात वर्षमात्र है। प्रथम समयवि. असंख्यात वर्षमात्र था सो असंख्यातगुणा घटता क्रम लीए संख्यात हजार स्थिति कांडकनिकरि घट्या तथापि आलापकरि इतना ही कहिए। बहुरि च्यारि घातिया कर्मनिका स्थितिसत्त्व संख्यात वर्षमात्र है। प्रथम समयवि भी संख्यात वर्षमात्र था सो संख्यातगुणा घटता क्रम लीए संख्यात हजार स्थिति कांडकनि करि घटया परंतु सामान्य आलाप करि इतना ही कहिए है ।।४८९।।
इति अपूर्वस्पर्धक-अधिकार समाप्त ।
स० चं०-अब अपूर्व स्पर्धक करनेका कालके अनंतरि समयतें लगाय कृष्टिकरणका काल है। जिस करणतै कर्मका अनुभाग कृष कहिये हीन करिए सो सार्थक नाम कृष्टि जानना, सो दोय प्रकार है-वादर कृष्टि १ सूक्ष्म कृष्टि १ । तहां संज्वलन कषायनिके पूर्व अपूर्व स्पर्धक जैसैं इंटनिकी पंक्ति होइ तैसै अनुभागका एक एक अविभाग प्रतिच्छेद बधती लीएं परमाणूनिका समूहरूप जो वर्गणा तिनके समूहरूप हैं । तिनके अनंतगुणा घटता अनुभाग होनेकरि स्थूल स्थूल खण्ड करिए सो वादर कृष्टिकरण है अर तिन स्थूल खण्डनिका अनंतगुणा घटता अनुभागरूप करि सक्ष्म सक्ष्म खण्ड करिए सो सक्ष्मकृष्टिकरण है तहां वादर कृष्टिकरणका काल प्रमाण जाननेकौं सूत्र कहै हैं
छक्कम्मे संछुद्धे कोहे मोहस्स वेदगद्धा जा । तस्स य पढमतिभागो होदि हु हयकण्णकरणद्धा ॥४९०।। षट्कर्मणि संक्षुब्धे क्रोधे क्रोधस्य वेदकाद्धा या।
तस्य च प्रथमत्रिभागः भवति हि हयकर्णकरणाद्धा ॥४९०॥ विदियतिभागो किट्टीकरणद्धा किट्टिवेदगद्धा हु।
तदियतिभागो किट्टकरणो हयकण्णकरणं चे ।।४९१॥ १. णामा-गोद-वेदणीयाणं छिदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्साणि । चउण्हं घादिकम्माणं दिदिसंतकम्म संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । -क० चु० पृ० ७९७ ।
___२. छसु कम्मेसु संछुद्ध सु जो कोधवेदगद्धा तिस्से कोधवेदगद्धाए तिण्णि भागा । जो तत्थ पढमतिभागो अस्सकण्णकरणद्धा, विदियो तिभागो किट्टीकरणद्धा, तदियतिभागो किट्टीवेदगद्धा। -क. चु० १०७९७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org