________________
३५८
क्षपणासार
उदय सहित हैं वा बंध उदय सहित हैं तिनकी प्रथम स्थिति अंतमुहर्तमात्र कही तिनवि जे केवल उदय सहित ही हैं तिनका द्रव्यकों अपकर्षण करि अपनी प्रथम स्थितिविर्षे निक्षेपण करै है । अन्य प्रकृतिनिका भी द्रव्य इनकी प्रथम स्थितिविर्षे संक्रमणरूप निक्षेपण करिए है। बहुरि इनका द्रव्य है सो उत्कर्षण करि बंधती जे अन्य प्रकृति तिनकी अंतरायामत संख्यातगुणा जो आबाधा ताकौं छोडि द्वितीय स्थितिवि जो जघन्य निषेक तीहिंस्यों लगाय बंधती स्थितिके सर्व निषेकनिवि निक्षेपण करिए है। केवल उदयमान प्रकृतिनिका द्रव्य अपनी द्वितीय स्थिति विर्षे नाही निक्षेपण करिए है। बहुरि बध उदय सहित प्रकृतिनके द्रव्यकौं प्रथम स्थितिवि वा बंधती द्वितीय स्थितिनिवि निक्षेपण करिए है।।
___ इहां अंतरायामके नीचें निषेकरूप तौ प्रथम स्थिति अर अंतरायामके उपरिवर्ती निषेकरूप द्वितीय स्थिति जाननी। तहां छह तो नोकषाय अर पुरुषवेद सहित श्रेणी चढ्याकै तौ अन्य दोय वेद अर स्त्रीवेद सहित श्रेणी चढ्याकै नपूंसकवेद अर नपूंसकवेद सहित श्रेणी चढ्या स्त्रीवेद एतौ बंध उदयरहित हैं। बहुरि स्त्री वा नपुंसकवेद सहित श्रेणी चढयाकै पुरुषवेद है सो अर सबनिकै जिस कषाय सहित श्रेणी चढ्या तीहि विना तीन संज्वलन कषाय ए उदय रहित केवल बंध सहित हैं। बहुरि स्त्री वा नपुंसकवेद सहित चढ्या जीवकै स्त्री वा नपुंसक वेद केवल उदय सहित है बहुरि पुरुष वेद सहित श्रेणो चढ्याकै पुरुषवेद अर सबनिके जिस कषाय सहित श्रेणी चढ्या सो कषाय ए बंध उदय सहित हैं। सो इनका अंतररूप निषेकनिका द्रव्यकौं पूर्वोक्त प्रकार सत्त्ववियु अपकर्षण करि तौ प्रथम स्थितिविष अर उत्कर्षण कीएं आबाधा छोडि बंधरूप स्थितिविर्षे निक्षेपण करिए है। इस अंतरकरण कालविर्षे अनुभागकांडक हजारौं हो हैं। अर स्थितिकांडक अर समान स्थितिबंध अर अंतरकरण इन तीनौंका काल समान है ताते युगपत समाप्त हो हैं ।।४३५॥
विशेष-प्रकृतमें हिन्दी टीकाकार पण्डित प्रवर पं० टोडरमलजी सा० ने पर्याप्त प्रकाश डाल ही दिया है। यहाँ इतना बतला देना आवश्यक प्रतीत होता है कि बन्धकी अपेक्षा तीनों वेदोंमें से यहाँ एक पुरुषवेदका ही बन्ध होता है, किन्तु जो जिस वेदके उदयसे क्षपकश्रेणि चढ़ता है, मात्र उसीका उदय रहता है। इसलिये पुरुषवेदके उदयसे श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके पुरुषवेदकी अपेक्षा बन्ध और उदय दोनों पाये जाते हैं। हाँ अन्य दोनों वेदोंमेंसे किसी भी वेदकी अपेक्षा श्रेणिपर चढ़े हुए जीवके पुरुषवेदका मात्र बन्ध ही पाया जाता है। इसी प्रकार यथासम्भव चारों संज्वलन कषायोंकी अपेक्षा भी विचार कर लेना चाहिये। उक्त कषायोंमेंसे किसी भी कषायके उदयसे श्रेणि आरोहण करे तो भी यथास्थान बन्ध चारोंका होता है । इस प्रकार इन सब व्यवस्थाओंको ध्यानमें रखकर यहाँ अन्तरकरणसम्बन्धी अन्य व्यवस्थाएं घटित कर लेनी चाहिये । विशेष स्पष्टीकरण हिन्दी टीकामें किया ही है। आगें संक्रमण कहिए है
सत्त करणाणि अंतरकदपढमे ताणि मोहणीयस्स । इगिठाणियबंधुदओ तस्सेव य संखवस्सठिदिबंधो ॥४३६। तस्साणुपुब्विसंकम लोहस्स असंकमं च संढस्स । आजुत्तकरणसंकम छावलितीदेसुदीरणदा ॥४३७।।
१. ताधे चेव णवंसयवेदस्स आजुत्तकरणसंकामगो, मोहाणीयस्स संखेज्जवस्सद्विदिगो बंधो, मोहणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org