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सात नोकषायक्षपणा-विधि
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ठिदिबंधपुधत्तगदे संखेज्जदिम गदं तदद्धाए । एत्थ अधादितियाणं ठिदिबंधो संखवस्सं तु ॥४५० ।। स्थितिबन्धपृथक्त्वगते संख्येयं गतं तदद्धायाम् ।
अत्र अघातित्रयाणां स्थितिबन्धः संख्यवर्षस्तु ॥४५०॥ स० चं०-तातै परै पृथक्त्व कहिए संख्यात हकार स्थितिबन्ध गएं तिस सप्त नोकषाय क्षपण कालका संख्यातवां भाग व्यतीत भया तहां नाम गोत्र वेदनीय इन तीन अघातियानिका स्थितिबन्ध पल्यका असंख्यातवां भागपनाकौं छोडि संख्यात हजार वर्षमात्र हो है ॥४५०॥
ठिदिखंडपुत्तगदे संखाभागा गदा तदद्धाए । घादितियाणं तत्थ य ठिदिसतं संखवस्सं तु ॥४५॥ स्थितिखंडपृथक्त्वगते संख्यभागा गता तदद्धायाः ।
घातित्रयाणां तत्र च स्थितिसत्त्वं संख्यवर्ष तु ॥४५१॥ स० च०-तातै परै संख्यात हजार स्थितिकांडक गएं सात नोकषाय कालका संख्यात बहुभाग व्यतीत भएं एक भाग अवशेष रहैं तीन घातियानिका स्थितिसत्त्व संख्यात वर्षप्रमाण भया। तातें आगे च्यारि घातियानिका स्थितिबन्ध अर स्थितिसत्त्व एक कांडककाल पर्यन्त समानरूप होइ । बहुरि केई स्थितिबन्ध अर स्थितिसत्त्व पूर्वतै संख्यातगुणे घटते हो हैं, जातें घातिकर्मनिका स्थितिबन्ध वा स्थितिसत्त्व संख्यात वर्षमात्र होनेतें स्थितिबन्धापसरण वा स्थितिकांडकका प्रमाण पूर्व स्थितिबंध वा स्थितसत्त्वतै संख्यात बहुभाग मात्र है। बहुरि नाम गोत्र वेदनीयका स्थितिकांडक पूर्ण होतें पूर्व स्थितिसत्त्वते असंख्यातगुणा घटता स्थितिसत्त्व हो है। अर इनका स्थितिबन्धापसरण पूर्ण होते पूर्व स्थितिबन्ध” संख्यातगुणा घटता स्थितिबंध हो है ऐसा अनुक्रम सप्त नोकषाय क्षपणाकालका अन्त पर्यन्त जानना ॥४५१॥
विशेष—इस गाथाका पूरा आशय हिन्दी टीकामें पण्डित जी ने दिया ही है। विशेष स्पष्टीकरणको दृष्टिसे पुनः दे रहे हैं तदनन्तर स्थितिकाण्डक पृथक्त्वके व्यतीत होनेके साथ सात नोकषायोंके क्षपणाकालके संख्यात बहुभाग व्यतीत होनेपर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिसत्त्व हो जाता है। तदनन्तर घातिकर्मोंके स्थितिबन्ध और स्थितिकाण्डकके पुनः पुनः पूर्ण होनेपर स्थितिबन्ध और स्थितिसत्त्व उत्तरोत्तर संख्यात गुणा हीन होता जाता है । तथा नाम, गोत्र और वेदनीयका स्थितिकाण्डक पूर्ण होनेपर असंख्यात गुणा हीन स्थितिसत्त्व होता है। तथा इन्हींके स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर अन्य स्थितिबन्ध संख्यात
१. तदो ट्ठिदिखंडयपुधत्ते गदे सत्तण्हं णोकसायाणं खवणद्धाए संखेज्जदिभागे गदे णामा-गोद-वेदणीयाणं संखेजाणि ट्ठिदिबंधो । क० चु० पृ० ७५४ ।
२. तदो टिदिखंडयपुधत्ते गदे सत्तण्हं णोकसायाणं खवणद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु णाणावरणदसणावरण-अंतराइयाणं संखेज्जवस्सटिदिसतकम्मं जादं । क० चु० पृ० ७५४ ।
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