Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 295
________________ लब्धिसार नामद्विके वेदनीयस्थितिबन्धः संख्यवर्षको भवति । एवं सप्तकषाया उपशान्ताः शेषभागान्ते ॥ २६१ ॥ सं० टी०-सप्तनोकषायोपशमनकालसंख्यातबहभागावशेषावसरे सर्वतः स्तोकः संख्यातसहस्रवर्षमात्रो मोहस्थितिबन्धः । ततः संख्येयगुणः संख्यातसहस्रवर्षमात्रो घातित्रयस्थितिबन्धः । ततः संख्यातगुणः संख्यातसहस्रवर्षमात्रो वोसियस्थितिबन्धः । ततः साधिकः संख्यातसहस्रवर्षमात्रो वेदनीयस्थितिबन्धश्च भवति । एवं नपुंसकवेदोपशमनप्रकारेणैव सप्त नोकषायाः संख्यातसहस्रस्थितिबन्धषु गतेषु अवशेषबहुभागचरमसमये उपशमिता भवन्ति ॥ २६१ ॥ सात नोकषायोंकी उपशमनाके समय कार्यविशेषका निर्देश सं० चं०-सर्व ही कर्मनिका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण हो है। तहाँ स्तोक मोहका तातै संख्यातगुणा तीन घातियानिका ताः संख्यातगुणा नामगोत्रका तातें किछू अधिक वेदनीयका जानना। ऐसै नपुंसकवेदका उपशमवत् सात नोकषाय हैं ते उपशमनका अनशेष बहुभाग रहे थे तिनिका अन्त समयविषै उपशमाना हो है ।। २६१ ।। अत्र संभवद्विशेषप्रदर्शनार्थमिदमाह णवरि य पुंवेदस्स य णवकं समऊणदोण्णिआवलियं । मुच्चा सेसं सव्वं उवसंतं होदि तच्चरिमे' ।। २६२ ॥ नवरि च पुंवेदस्य च नवकं समयोनद्वयावलिकाम् । मुक्त्वा शेषं सर्वमुपशान्तं भवति तच्चरमे ॥ २६२ ॥ सं० टी०-पुंवेदनवकबन्धस्य समयोनद्वयावलिमात्रसमयप्रवद्धान् वर्जयित्वा शेषं पुंवेदद्रव्यं सर्वमपि तदुपशमनकालचरमसमये उपशमितं भवतीत्ययं विशेषो द्रष्टव्यः । पंवेदसत्त्वद्रव्योपशमनकालचरमसमये समयोनद्वयावलिमात्रनवकबन्धसमयप्रबद्धानामुपशमनजितमवस्थानं कथमिति चेदुच्यते, तद्यथा पुंवेदोपशमनकालाभ्यन्तरे आवलिद्वयेऽवशिष्टे द्विचरमावलिप्रथमसमये बद्धस्य समयप्रबद्धस्य बन्धप्रथमसमयादारभ्य बन्धाबलिचरमसमयपर्यन्तमुपशमनं नास्ति । सर्वत्र नवकबन्धस्याचलावलिव्यतिक्रमे सत्येवोपशमनापकर्षणादिक्रियासम्भवो न बन्धावल्यामिति परागमसम्प्रदायाद्वन्धावल्यां व्यतिक्रान्तायां तदनन्तरचरमोपशमनावल्यां प्रथयसमयादारभ्य समयं समयं प्रत्येकैकफाल्यपशमनविधानेन उपशमनावलिचरमसमये चरमफालिद्रव्यं सर्वसंक्रमेणोपशमितं द्विचरमावलिद्वितीयसमये वद्धसमयप्रबद्धस्योपशमनकालचरमाबलिप्रथमसमयपर्यन्तमुपशमनं नास्ति । ततः परं समयं प्रत्येकैकफालिद्रव्योपशमन विधानेनोपशमनावलिचरमसमये चरमफालिद्रव्यं वर्जयित्वा शेषं सर्वमुपशमितं । पुनचिरमावलितृतीयसमये बद्धसमयप्रबद्धस्योपशमनचरमावलिद्वितीयसमयपर्यन्तमुपशमनं नास्ति । ततः परं समयं प्रत्येकैकफाल्युपशमनविधानेन चरमफालिद्विचरमफालिद्वयं वर्जयित्वा शेषसर्वमुपशमितम् । एवमनेन क्रमेण गत्वा द्विचरमावलिचरमसमये बद्धसमयप्रबद्धस्योपशमनचरमावलिद्विचरमसमयपर्यन्तमुपशमनं नास्ति । ततः परं चरमसमये एकफालिद्रव्यमुपशमितम्, अवशिष्टं सर्वद्रव्यमनुपशमितमास्ते, तत उपशमनकालचरमावल्यां बद्धसमयप्रबद्धानामावलिमात्राणामुपशमनचरमावलिचरयसमये किंचिदपि द्रव्यं नोपशमितं तेषामद्यापि बन्धावलिव्यतिक्रमाभावात् । पुनरुपरितनोच्छिष्टावल्यां पुंवेदस्य बन्ध एव नास्ति, १. णवरि पुरिसवेदस्स वे आवलिया बंधा समयणा अणुवसंता । वही पृ० २८४। २. मुद्रितप्रती 'द्विचरमफालिद्विचरमसमये' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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