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अथ क्षपणासारः
स० चं०-इहाँ पर्यन्त गाथा सूत्रनिका व्याख्यान संस्कृत टीकाके अनुसारि कीया जातै इहाँ पर्यन्त गाथानिहीकी टोकाकरिकै संस्कृत टीकाकारने ग्रंथ समाप्त कीना है। बहुरि इहांत आग गाथा सूत्र हैं तिनिविषै क्षायिकचारित्रका वर्णन है, तिनकी संस्कृत टीका तौ अवलोकनेमैं आई नाहीं, तातै तिनका व्याख्यान अपनी बुद्धि अनुसारि इहाँ कीजिये है। बहुरि भोज नामा राजाका बाहुवलि नामा मंत्रीकै ज्ञान उपजावनेके अथि श्रीमाधवचन्द्र नामा आचार्य करि विरचित क्षपणासार ग्रंथ है तिसविषै क्षायिकचारित्र हीका विधान वर्णन है सो इहाँ तिस क्षपणासारका अनुसारि लीएँ भी व्याख्यान करिए है । तहाँ प्रथम मंगलाचरण करिए हैश्रीवर धर्म जलधिके नंदन रत्नाकरवर्धक सुखकार ।
लोकप्रकाशक अतुल विमल प्रभु संतनिकर सेवित गुणधार ॥ माधववरबलभद्रनमितपदपद्मयुगल धारै विस्तार ।
नेमिचन्द्र जिन नेमिचन्द्र गुरु चन्द्रसमान नमहं सो सार ॥ १ ॥ याके नेमिनाथ तीर्थंकर वा नेमिचन्द्र आचार्य वा चन्द्रमाका विशेषण करने करि तीन अर्थ हैं तहाँ माधववरबलभद्रनमितपदपद्मयुगलका अर्थ-नेमिचन्द्र जिनकी पक्षविषै तो नारायण बलभद्रकरि अर नेमिचन्द्र गुरुकी पक्ष विष माधवचन्द्र आचार्य अर कल्याणरूप बाहुबलि मंत्री तिनकरि अर चन्द्रमाकी पक्षविषै वसंतराज उत्कृष्ट सप्तसेना विषै प्रधान ताकरि नमित हैं चरण युगल जिनके ऐसे हैं । अन्य अर्थ सुगम हैं । अब इहाँ गाथा सूत्र कहिए है
तिकरणमुभयोसरणं कमकरणं खवणदेसमंतरयं । संकमअपुव्वफड्ढयकिट्टीकरणाणुभवण खवणाये ॥३९२॥ त्रिकरणमुभयापसरणं क्रमकरणं क्षपणं देशमंतरकम् ।
संक्रमं अपूर्वस्पर्धककृष्टिकरणानुभवनानि क्षपणायाम् ॥३९२॥ स० चं०-अधःकरण १ अपूर्वकरण १ अनिवृत्तिकरण १ ए तीन करण अर बंधापसरण १ सत्त्वापसरण १ ए दोय अपसरण बहुरि क्रमकरण १ अष्ट कषाय सोलह प्रकृतिनिकी क्षपणा १ देशघातिकरण १ अंतरकरण १ संक्रमण १ अपूर्वस्पर्धककरण १ कृष्टिकरण १ कृष्टिअनुभवन १ ऐसैं ए चारित्रमोहकी क्षपणावि अधिकार जानने । तहाँ पीछे ज्ञानावरणादि कर्मनिका क्षपणा अधिकार अर योग निरोध अधिकारका वर्णन होगा।
तहाँ प्रथम अधःकरणका वर्णन करिए है-पहलै पूर्वोक्त प्रकार तीन करण विधानतै सात प्रकृतिनिका नाशकरि क्षायिक सम्यग्दृष्टी होइ मोहनीकी इकईस प्रकृतिनिका सत्त्वसहित होइ सो जघन्य तौ अंतमुहूर्त अर उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त सहित आठ वर्षकरि हीन दोय कोटि पूर्व तिनिकरि
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