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क्षपणासार
स्थितिबन्धसे उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा घटता क्रम लिये होता है । यह स्थितिवन्धापसरणके विषय में सामान्य नियम है जो बँधनेवाले सभी कर्मोंपर लागू होता है।
एवं पल्लं जादा वीसीया तीसिया य मोहो यो । पल्लासंखं च कम बंधेण य वीसियतियाओं ।।४२०।। एवं पल्यं जाते वीसिया तीसिया च मोहश्च ।
पल्यासंख्यं च क्रमेण बंधेन च वीसियत्रिकाः ॥ ४२० ॥ स० चं-ऐसे वीसीयनिका पल्यमात्र स्थितिबंध भया तहां पर्यंत तौ वीसीयनिकेतै ड्योढा तीसीयनिका अर दूणा मोहका स्थितिबंध है। ऐसा ही क्रम जानना । बहुरि ताके अनंतरि एक स्थितिबंधापसरण होनेकरि वीसीयनिका तौ स्थितिबंध संख्यातगुणा घटता भया। पल्यकौंसंख्यातका भाग दीएं तहां बहुभाग घटाएं एक भागमात्र स्थितिबंध रह्या बहुरि अन्य कर्मनिका पल्य-मात्र स्थितिबंध न भया है तातै पूर्व बंधतै पल्यका संख्यातवां भागमात्र विशेषकरि हीन स्थितिबंध भया। तहां वीसीयनिका स्तोक स्थितिबंध है। तातें तीसीयनिका संख्यातगणा है। जाते इहां वीसीयनिका तौ पल्यके संख्यातवें भाग अया अर तीसीयनिका साधिक पल्यमात्र है । बहु रि तीसीयनिकेतै मोहका विशेष अधिक है। ऐसैं अल्पबहुत्व हुआ। इस क्रमकरि संख्यात हजार स्थितिबंध भएं तीसीयनिका पल्यमात्र स्थितिबंध भया। तहां तातें तीसरा भाग अधिक मोहका स्थितिबंध हो है, जातै तीसीयका पल्यमात्र स्थितिबंध होइ तौ चालीसीयका केता होइ असे त्रैराशिककरि त्रिभाग अधिक पल्यमात्र मोहका स्थितिबंध आवै है। बहुरि याके अनंतरि तीसीयनिका पल्यका संख्यात बहुभागमात्र एक स्थितिबंधापसरणकरि पूर्व स्थितिबंध” संख्यातगुणा घटता स्थितिबंध हो है। तहां नाम गोत्रका स्तोक तातें तीसीयनिका संख्यातगुणा तातै मोहका संख्यातगुणा स्थितिबंध हो है। इहां वा आगें अल्पवहुप्व यथासम्भव स्थितिबंधापसरण होनेते संभव है सो विचारै प्रगट भास हैं।
बहुरि इस अनुक्रम” संख्यात हजार स्थितिबंध भएं मोहका पल्यमात्र स्थितिबंध हो है । तहां अवशेष छह कर्मनिका स्थितिबंध पल्यके संख्यातवें भागमात्र हो है। ऐसे वीसीय तीसीय मोहका पल्यमात्र स्थितिबंध होनेका क्रम जानना। बहुरि ताके अनंतरि मोहका पल्यका संख्यात बहुभागमात्र एक स्थितिबंधापसरण भया तब सातौ ही कर्मनिका स्थितिबंध पल्यके संख्यातवें भागमात्र भया । तहां नाम गोत्रका स्तोक तातें तीसीयनिका संख्यातगुणा तातै मोहका संख्यातगुणा स्थितिबंध जानना। बहरि ऐसे अनुक्रमकरि संख्यात हजार स्थितिबंध भएं नाम गोत्रका
| पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिबंध हो है। बहरि ताके अनंतार पल्यका असंख्यात बहभागमात्र एक स्थितिबंधापसरण होनेतें नाम गोत्रका पल्यका असंख्यातवाँ भागमात्र
१. जाधे णामा-गोदाणं पलिदोवमट्टिदिगो बंधो ताधे अप्पाबहुअं वत्तइस्साभो। तं जहा–णामागोदाणं ठिदिबंधो थोवो, णाणावरणीय-दसणावरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणं ठिदिबंधो विसेसाहिओ। मोहणीयस्स दिदिबंधो विसेसाहिओ। क० चु० पृ० ७४५ ।।
२. तदो संखेज्जेसु दिदिबंधसहस्सेसु गदेसु मोहणीयस्स वि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ठिदिबंधो जादो । ताधे सत्वेसि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ठिदिबंधो जादो। क० चु० पृ० ७४७ ।
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