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अनिवृत्तिकरणमें क्रियाविशेषका निर्देश तत्काले स्थितिसत्त्वं लक्षपृथक्त्वं तु भवति उदधीनाम् ।
बंधापसरणं बंधः स्थितिखंडं सत्त्वमपसरति ॥४१८॥ स० चं-तिस कालविषै कर्मनिका स्थितिसत्त्व पृथक्त्व लक्षसागरप्रमाण हो है सो अनिवृत्तिकरणका प्रथम समयसम्बन्धी स्थितिबंधत संख्यातगुणा घाटि जानना। बहुरि सर्वत्र असा जानना-स्थितिबंधापसरणनिकरि स्थितिबंध घट है अर स्थितिकांडकनिकरि स्थितिसत्त्व घट है।। ४१८ ॥
पल्लस्स संखभागं संखगुणूणं असंखगुणहीणं । बंधोसरणे पल्लं पल्लासंखे असंखवस्सं ति ॥४१९।। पल्यस्य संख्यभाग संख्यगुणोनमसंख्यगुणहीनम् ।
बंधापसरणे पल्यं पल्यासंख्यं असंख्यवर्षमिति ॥४१९।। स. चं-पल्यका संख्यातवां भाग अर पूर्व बंधते संख्यातगुणा घटता अर असंख्यातगुणा घटता प्रमाण लीएं स्थितिबंधापसरणनिकरि पल्यमात्र अर पल्यका असंख्यातवां भागमात्र अर असंख्यात वर्षमात्र स्थितिबंध हो है। भावार्थ--पल्यमात्र स्थितिबंध होने पर्यंत तौ पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिबंधापसरण जानना। तहां पूर्व स्थितिबंधतें अनंतरि स्थितिबंध किछू विशेष घटता हो है। बहरि तातै परे पल्यका असंख्यातवां भागमात्र जो दूरापकृष्टि नामा स्थितिबंध
का भाग दीएं तहां एक भाग विना बहुभागमात्र स्थितिबंधापसरण जानना। तहां पूर्व स्थितिबंध” अनंतर स्थितिबंध संख्यातगुणा घटता हो है। बहुरि तातें परै असंख्यात हजार वर्षमात्र स्थितिबंध होने पर्यंत पल्यकौं असंख्यातका भाग दीएं तहां एक भाग बिना बहुभागमात्र स्थितिबंधापसरण जानना। तहां पूर्व स्थितिबंधत अनंतर स्थितिबंध असंख्यातगुणा घटता हो है। ऐसैं एक एक स्थितिबंधापसरणविषै स्थितिबंध घटाएं अवशेष स्थितिबंध रहै हैं। तहां पूर्व स्थितिबंधते अनंतर स्थितिबंध किछू विशेष घटता हो है । बहुरि याही प्रकार प्रमाण लीएं स्थिति कांडकनिकरि स्थितिसत्वकौं घटाइ पल्यादिमात्र स्थितिसत्त्वका होना जानना ॥४१९।।
विशेष-अनिवृत्तिकरणमें जहाँ जाकर एकेन्द्रिय जीवोंके समान स्थितिबन्ध होता है वहाँ से संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण होनेपर नाम-गोत्रका एक पल्योपम, ज्ञानावरण, दर्शनावरण वेदनीय और अन्तरायका डेढ पल्योपम तथा महोनीयका दो पल्योपम स्थितिबन्ध होने लगता है । अब विचार यह करना है कि अब तक स्थितिबन्धापसरण पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण था, आगे उत्तरोत्तर स्थितिबन्धापसरण द्वारा स्थितिबन्ध घटता क्रम लिये होने पर स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण कितना रहता है इसी तथ्यको इस गाथा द्वारा स्पष्ट किया गया है। आशय यह है कि स्थितिबन्धापसरण द्वारा जिस किसी भी कर्मके पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र होता है। आगे जहाँ जाकर जिस किसी-कर्मका स्थितिबन्ध प्रथम बार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है वहाँ तक प्रत्येक स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पूर्व-पूर्व स्थितिबन्धसे उत्तरोत्तर संख्यातगुणा घटता क्रम लिये होता है। तथा इससे आगे जहाँ जाकर जिस किसी कर्मका स्थितिबन्ध प्रथम बार असंख्यात वर्ष प्रमाण प्राप्त होता है वहाँ तक प्रत्येक स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पूर्व-पूर्व
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