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क्षपणासार
बहुरि प्रश्न-केते कर्म उदीरणारूप होइ उदयावली प्रति प्रवेश करै हैं ? ताका उत्तरसातावेदनीय अर मनुष्यायु विना स्वमुखोदयी सर्व ही कर्म उदयावलीविर्षे प्रवेश करैं हैं उदीरणारूप हो हैं।'
विशेष-आयुकर्म और वेदनीयकर्मको छोड़कर क्षपक वेदे जानेवाले सभी कर्मोंका प्रवेशक होता है । यथा-पाँच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरणका नियमसे वेदक होता है। निद्रा और प्रचलाका कदाचित् वेदक होता है, क्योंकि कदाचित् अव्यक्त उदय होनेमें कोई विरोध नहीं है, साता और असातामेंसे अन्यतरका वेदक होता है। चार संज्वलन, तीन वेद और हास्य-शोक तथा रति-अरति इन दो युगलोंमेंसे अन्यतरका नियमसे वेदक होता है। भय और जुगुप्साका कदाचित् वेदक होता है। मनुष्यायु, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक-तैजस-कार्मणशरीर, छह संस्थानोंमेंसे अन्यतर संस्थान, औदारिक शरीर आंगोपांग, वज्रवृषभनाराच संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु आदि चार, दो विहायोगतियोंमेंसे अन्यतर विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग और सुस्वर-दुःस्वर इन युगलोमेंसे कोई एक-एक, आदेय, यशस्कीति. निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका वेदक होता है। इनके सिवाय अन्य प्रकृतियोंका यहाँ उदय सम्भव नहीं है । इन प्रकृतियोंमें सातावेदनीय और मनुष्यायुको छोड़कर शेषका उदोरक होता है।
बहुरि प्रश्न-पूर्वं कौन कर्म उदय अर बन्धकरि विनशै है १ ताका उत्तर-स्त्यानगृद्धित्रिक ३ असातावेदनीय १ मिथ्यात्व १ कषाय वारह १२ अरति १ शोक १ स्त्रीनपुसकवेद २ आयु चारि ४ परावर्त अशुभ नामकी गुणतीस २९ मनुष्यगति १ औदारिकशरीर वा अंगोपांग २ वज्रवृषभनाराच १ मनुष्यानुपूर्वी १ आतप १ उद्योत १ नीचगोत्र १ इतनी प्रकृतिनिकी बन्धकी व्युच्छित्ति पहलै भई है।
___ इहाँ नरक-तिर्यंचगति २ एकेंद्रियादि चारि ४, संस्थान पाँच ५ संहनन पाँच ५ नरकतिर्यंचानुपूर्वी २ अप्रशस्त विहायोगति १ स्थावर १ सूक्ष्म १ अपर्याप्त १ साधारण १ अस्थिर १ अशुभ १ दुर्भग १ दुःस्वर १ अनादेय १ अयशस्कीति १ ए गुणतीस प्रकृति परावर्त अशुभनाम कर्मकी जाननी।
बहरि स्त्थानगृद्धित्रिक ३ दर्शनमोह ३ कषाय बारह १२ नरक-तिर्यंच-देव आयु ३ नरकतिर्यच-देव गति वा आनुपूर्वी ६ एकेंद्रियादि जाति चारि, वैक्रियिक-आहारकशरीर वा अंगोपांग ४ वज्रवृषभ नाराच विना संहनन पांच ५ मनुष्यानुपूर्वी १ आतप १ उद्योत १ स्थावर १ सूक्ष्म १ साधारण १ अपर्याप्त १ दुर्भग १ अनादेय १ अयशस्कीति १ तीर्थंकर १ नीचगोत्र १ इनके उदयकी व्युच्छित्ति पहल भई है, अवशेषनिका इहाँ उदय पाईए है ।3
बहुरि प्रश्न - अंतरकरणकौं कहाँ करिक कौन-कौन कर्मनिका कहाँ संक्रमण करावने
१. णवरि एत्थ पवेसगो त्ति वुत्ते उदीरणासरूवेणुदयावलियं पवेसेमाणो घेत्तव्वो, उदीरणोदएण पयदत्तादो । जयध०, ता० मु० पृ० १९४५ ।
२. ता० मु०, पृ० १९४५-१९४६ । ३. ता० मु० पृ० १९४६-१९४७ ।
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