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अधःकरणमें क्रियाविशेषका निर्देश
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वाला हो है ? ताका उत्तर–अनिवृत्तिकरण कालका संख्यातवाँ भाग रहैं अन्तरकरण अर संक्रमण क्रियाकौं करै है। इस अवसरविर्षे नाहीं करै है।'
बहुरि प्रश्न-किसी स्थिति वि वर्तमान कर्म है सो कांडकघात करि कैसे स्थितिस्थानकौं प्राप्त हो है ? भावार्थ यहु-स्थितिकांडकघातका प्रश्न कीया, बहुरि किसा अनुभाग विर्षे वर्तमान कर्म है सो कांडकघातकरि अवशेष कैसा स्थानकौं प्राप्त हो है । भावार्थ यहु-अनुभाग काडकघातका प्रश्न कीया। इनि दोऊनिका उत्तर यहु-जो स्थितिकांडकघात अनुभागकांडकघात इस अधःकरण विर्षे नाहीं है अपूर्वकरणविर्षे हो है। ऐसा यहु चारित्रमोहकी क्षपणाकौं सन्मुख भया जीव प्रथम अधःप्रवृत्तकरण करै है ।।३९२।।
गुणसेढी गुणसंकमठिदिरसखंडाण णत्थि पढम्हि । पडिसमयमणंतगुणं विसोहिबड्डीहिं वड्ढदि हुँ ।।३९३।। गुणश्रेणी गुणसंक्रमं स्थितिरसखंडनं नास्ति प्रथमे ।
प्रतिसमयमनंतगुणं विशुद्धिवृद्धिभिः वर्धते हि ॥३९३॥ स० चं०-पहलै अधःप्रवृत्तकरणविषै गुणश्रेणि १ गुणसंक्रम १ स्थितिकांडकघात १ अनुभाग कांडकघात १ ए नाहीं संभव हैं। सो जीव समय २ प्रति अनन्तगुणा क्रम लीएँ विशुद्धताकी वृद्धिकरि वर्धमान हो है ॥३९३॥
सत्थाणमसत्थाणं चउविट्ठाणं रसं च बंधदि हु । पडिसमयमणंतेण य गुणभजियकमं तु रसबंधे ।।३९४।।
शस्तानामशस्तानां चतुरपि स्थानं रसं च बध्नाति हि ।
प्रतिसमयमनंतेन च गुणभजितक्रमं तु रसवंधे ॥३९४॥ स० चं०-बहुरि सो जीव समय समय प्रति प्रशस्त प्रकृतिनिका अनंतगुणा क्रम लीएं चतुःस्थानक अनुभागबंध करै है। अर अप्रशस्त प्रकृतिनिका अनंतवां भागका क्रम लीएं द्विस्थानिक अनुभागबंध करै है ॥३९४॥
पल्लस्स संखभागं मुहुत्तअंतेण ओसरदि बंधे । संखेज्जसहस्साणि य अधापवत्तम्हि ओसरणा ॥३९५।। पल्यस्य संखभागं मुहर्तान्तमपसरति बंधे। संख्येयसहस्राणि च अधःप्रवृत्ते अपसरणा ॥३९५॥
१. ण ताव अन्तरं करेदि, परदो कहिदि त्ति अन्तरं । ता० मु० पृ० १९४७ । २. एदीए गाहाए टिदिघादो अणुभागघादो च सूचिदो भवदि । ता० मु०, पृ० १९४७ ।
३. तदो इमस्स चरिमसमयअधापवत्तकरणे वट्टमाणस्स णत्थि दिदिघादो अणुभागघादो वा, से काले दो वि घादा पवित्तिहिति । तं पुण अप्पसत्थाणं कम्माणमणंता भागा। ता० मु०, पृ० १९४८ ।
४. पलिदोवमस्स संखेञ्जदिभागो ट्रिदिबंधेणोसरिदो । ता० मु०, पृ० १९५१ ।
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