________________
३३८
क्षपणासार
स० चं०-पूर्व स्थितिबंधतै पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्ध घटाइ एक अन्तर्मुहूर्त काल पर्यंत समय समय समान बंध होइ सो यह एक स्थितिबन्धापसरण भया । ऐसें संख्यात हजार स्थितिबंधापसरण अधःप्रवृत्तकरणविर्षे हो हैं ॥३९५॥
आदिमकरणद्धाए पढमद्विदिबंधदो दु चरिमम्हि । संखेज्जगणविहीणो ठिदिबंधो होदि णियमेण ॥३९६।।
आद्यकरणाद्धायां प्रथमस्थितिबंधतस्तु चरमे ।
संख्येयगुणविहीनः स्थितिबंधो भवति नियमेन ॥३९६॥ स० चं०-ऐसे स्थितिबंधापसरण होने” प्रथम अधःप्रवृत्तकरण कालविषै प्रथम समय जो स्थितिबंध हो है तातें संख्यातगुणा घटतो अंत समयविषै स्थितिबंध नियमकरि हो है। ऐसे इस अधःकरणविणे आवश्यक हो है। जहां अन्य जीवके नीचले समयवर्ती भावनिके समान अन्य जीवकै ऊपरि समयवर्ती भाव होंहि सो अधःप्रवृत्तकरण ऐसा सार्थक नाम जानना ॥३९६|| आगैं अपूर्वकरणका वर्णन करिए है
गुणसेढी गुणसंकम ठिदिखंडमसत्थगाण रसखंडं । विदियकरणादिसमए अण्णं ठिदिबंधमारभई ।।३९७।। गुणश्रेणी गुणसंक्रमं स्थितिखंडमशस्तकानां रसखंडम् ।
द्वितीयकरणादिसमये अन्यं स्थितिबन्धमारभते ॥३९७॥ स० चं०-दूसरा जो अपूर्वकरण ताका प्रथम समयविषै गुणश्रेणि १ गुणसंक्रम १ अर स्थितिखंडन १ अर अप्रशस्त प्रकृतिनिका अनुभागखंडन हो है । बहुरि अधःकरणका अंत समयविषै जो स्थितिबंध होता था तातै पल्यका असंख्यातवां भागमात्र घटता और ही स्थितिबंधकौं प्रार) है जातें इहां एक स्थितिबंधापसरण होने” इतना स्थितिबन्ध घटाइए है ॥३९७||
गुणसेढीदीहत्तं अपुव्वचउक्कादु साहियं होदि । गलिदवसेसे उदयावलिवाहिरदो दु णिक्खेओ ॥३९८।। गुणश्रेणीदीर्घत्वं अपूर्वचतुष्कात् साधिकं भवति ।
गलितावशेष उदयावलिवाह्यतस्तु निक्षेपः ॥३९८॥ स० चं०- इहां गुणश्रोणि आयामका प्रमाण अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसांपराय क्षीणकषाय इन च्यारि गुणस्थाननिका मिलाया हूवा कालतें साधिक है। सो अधिकका प्रमाण क्षीणकषाय कालके संख्यातवे भागमात्र है सो उदयावलीतै बाह्य गलितावशेषरूप जो यहु गुणश्रोणि आयाम ताविषै अपकर्षण कीया द्रव्यका निक्षेपण हो है ॥३९८॥
पडिसमयं ओकड्डदि असंखगुणिदक्कमेण सिंचदि य । इदि गणसेढीकरणं पडिसमयमपुव्वपढमादो ॥३९९।।
१. गुणसेढी असंखेञ्ज गुणा, सेसे च णिक्खेवो, विसोही च अणंतगुणा । ता० मु०, पृ० १९५२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org