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क्रमकरणके विनाशका निर्देश
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धिकः प ततो धातित्रयबेदनीययोविशेषाधिकः प तत: संख्यातसहस्रस्थितिबन्धेषु गतेषु सर्बत: स्तोको
a४ नामगोत्रयोः स्थितिबन्धः प ततो विशेषाधिको घातित्रयवेदनीययोः प ३ ततोऽधिको मोहनीयस्य aa
।३।२ प २ एवं सिद्धान्ताविरोधेन स्थितिबन्धाल्पबहुत्वं ज्ञातव्यम् ॥३३५।। as
स० चं० –तातें असंख्यात हजार स्थितिबंध गएं सर्वतै स्तोक मोहका तातें असंख्यातगुणा नाम गोत्रका तातै विशेष अधिक तीन घातिया अर वेदनीयका स्थितिबंध हो है। बहुरि तातै संख्यात हजार स्थिति बंध गएं सर्व स्तोक नामगोत्रका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र तातै विशेष अधिक मोहका तातै विशेष अधिक तीन घातिया अर वेदनीयका स्थितिबंध हो है। बहरि तातें परै संख्यात हजार स्थितिबंध गएं सर्वतै स्तोक नामगोत्रका तातै विशेष अधिक तीन घातिया अर वेदनीयका तातें तीसरा भाग अधिक मोहका स्थितिबंध हो है ।।३३५।।
कमकरणविणवादो उवरिट्ठविदा विसेसअहियाओ । सव्वासिं तण्णद्धे हेट्ठा सव्वासु अहियकमं ।।३३६।। क्रमकरणविनाशात् उपरि स्थिता विशेषाधिकाः ।
सर्वासां तदद्धायां अधस्तना सर्वासु अधिकक्रमम् ॥३३६॥ सं० टी०-क्रमकरणविनाशस्य व्यत्क्रमणकालस्योपरि तत्कालावसानपल्यासंख्यातभागमात्रस्थितिबन्धात्प्रभृत्युत्तरकाले सर्वकर्मप्रकृतीनां स्थितिबन्धाः विशेषाधिकाः स्थापिताः रचिता इत्यर्थः । क्रमकरणविनाशादधस्तात्तत्कालादिनाऽसंख्येयवर्षमात्रस्थितिबन्धात्पूर्वं संख्यातवर्षसहस्रस्थितिबन्धपर्यंतमायुर्वजितसप्तकर्मप्रकृतीनां स्थितिबन्धाः विशेषाधिकाः ॥३३६॥
स. चं०-क्रम करणका विनाश जिस कालविषै भया तिस कालके ऊपरि तिस कालका अंत समयविषै पल्यका असंख्यातवाँ भागमात्र स्थितिबंध भया तातें लगाय पीछ उत्तर कालविषै सर्व कर्म प्रकृतिनिका जे स्थितिबंध हैं ते पूर्व स्थितिबंध” उत्तर स्थितिबंध विशेष अधिक स्थापे हैं। गणकाररूप नाही हैं। बहरि क्रमकरणका नाशके नीचैं तिस क्रमकरणका कालकी आदिविषै असंख्यात वर्षमात्र स्थितिबंध है तातै पहिलै संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबंध पर्यंत आयु विना सात कर्मनिका बंध हो है। ते भी पूर्व स्थितिबंधते उत्तर स्थितिबंध अधिक क्रम लीए हो हैं गुणकाररूप नाही हैं ॥३३६॥
जत्तो पाये होदि हु असंखवस्सप्पमाणठिदिबंधो । तत्तो पाये अण्णं ठिदिबंधमसंखगुणियकम ॥३३७।।
१. जत्तो पाए असंखेज्जवस्सट्ठिदिबंधो तत्तो पाए पुण्णे पुण्णे दिदिबंधे अण्णं दिदिबंधमसंखेज्जगुणं बंधइ । एदेण कमेण सत्तण्हं पि कम्मपयडीणं । वही पृ० १९१० ।
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