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लब्धिसार
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तथा नपुंसकवेदस्त्रीवेदसप्तनोकषायाणामुपशमनकालश्चतुर्णा समान एव ॥३५३॥
सोई कहिए है
सं० चं०-पुरुषवेद अर क्रोधका उदय सहित चढ्या जीवकी क्रोध अर मानकी प्रथम स्थिति मिलाई हुई जेती होइ तितनी मानका उदय सहित चढ्या जीवक मानकी प्रथम स्थिति हो है । भावार्थ-जो क्रोध सहित श्रेणी चढनेवालेकै तौ पहिलै क्रोधका उदय हो है। पीछे मानका उदय हो है । अर मानका उदय सहित श्रेणी चढयाकै क्रोधका उदय न हो है मानका ही उदय हो है। ताकै तिन दोऊनिका उदय कालके समान याकै मानका उदय काल है इस वास” तिनि दोऊनिकी प्रथम स्थिति समान याकै मानकी प्रथम स्थिति कही है। ऐसे ही आगैं समझना। बहुरि क्रोधका उदय सहित चढ्या जीवक क्रोध अर मान अर मायाकी प्रथम स्थिति मिलाई हुई जेती होइ तितनी मायाका उदय सहित चढया जीवकै लोभकी प्रथम स्थिति हो है । इहाँ ऐसा जानना
क्रोधका उदय सहित श्रेणी चढयाकै तौ क्रम” च्यारयो कषायका उदय हो है। मान सहित चढ्याकै क्रोध विना तीनका ही उदय हो है। माया सहित चढयाकै माया अर लोभका ही उदय है । लोभ सहित चढ्याकै केवल लोभ हीका उदय हो है तातै पूर्वोक्त प्रकार प्रथम स्थिति कही है। बहरि च्यारयोविषै किसी कषायका उदय सहित चढे सर्व ही जीवनिका सूक्ष्म लोभकी प्रथम स्थिति समान है। अर तिनकै नपुंसक स्त्रीवेद सात नोकषायनिका उपशमन काल समान है ॥३५३॥
जस्सुदयेणारूढो सेढी तस्सेव ठविदि पढमठिदि । सेसाणावलिमत्तं मोत्तूण करेदि अंतरं णियमा ।।३५४॥
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