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संक्रमित द्रव्यका विभागीकरण
२५१ विशेष -यहाँ २८४, गाथासे लेकर २८८ तकको गाथामें जिन बातोंको निर्देश किया हैउनमेंसे कतिपय बातोंका खुलासा इस प्रकार है
१. अपकर्षित द्रव्यमेंसे कितना भाग कृष्टियोंको प्राप्त होता है और कितना भाग स्पर्धकरूप रहता है।
२. पिछले समयमें जो सूक्ष्म कृष्टियाँ की जाती हैं उनको पूर्वकृष्टि कहा गया है और उत्तरोत्तर वर्तमान समयमें जो सूक्ष्म कृष्टियाँ की जाती हैं उन्हें अपूर्वकृष्टि कहा गया है।
३. बादर लोभसे सूक्ष्मलोभमें बहत ही कम फलदान शक्ति रह जाती है। इसीलिए स्पर्धकगत अनुभागसे कष्टिगत अनुभागकी नीचे रचना करता है यह कहा गया है।
४. प्रथम समयसे जितने द्रव्यका अपकर्षण करता है उससे दूसरे समयमें पूर्व और अपूर्व कृष्टियोंमें सिंचन करनेके लिए असंख्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षण करता है। उसमें प्रथम समयकी अन्तिम कृष्टिमें जितने प्रदेश पुंजका निक्षेपण होता है उससे दूसरे समयको प्रथम जघन्य कृष्टिमें असं. ख्यातगुणे द्रव्यका निक्षेपण होता है। आगे अन्तिम अपूर्व कृष्टितक उत्तरोत्तर विशेषहीन-विशेषहीन द्रव्यका निक्षेपण होता है। उसके बाद प्रथम समयमें रची गई कृष्टियोंमें जो जघन्य कृष्टि है उसमें विशेषहीन द्रव्य देता है। इसके आगे ओघ उत्कृष्ट कृष्टिकी अपेक्षा प्रथम समयमें रची गई कृष्टियोंमें अन्तिम कृष्टिके प्राप्त होने तक सर्वत्र अनन्तवाँ भागप्रमाण विशेष होन द्रव्य देता है। पुनः उससे जघन्य स्पर्धककी आदि वर्गणामें अनन्तगुणाहीन प्रदेश विन्यास करता है। पुनः उससे उत्कृष्ट स्पर्धकसे नीचे जघन्य अतिस्थापनाप्रमाण स्पर्धक छोड़कर स्थित हुए वहाँके स्पर्धककी उत्कृट वर्गणाके प्राप्त होनेतक अनन्तवाँ भागप्रमाण विशेषहीन प्रदेश विन्यास करता है।
__५. यहाँ जिस प्रकार दूसरे समयमें प्रदेश विन्यासका क्रम बतलाया है उसी प्रकार शेष समयोंमें भी जानना चाहिए।"
६. यह दीयमान द्रव्यकी श्रेणिप्ररूपणा है। दृश्यमान द्रव्यकी श्रेणिप्ररूपणा करनेपर प्रथा कृष्टिमें दृश्यमान द्रव्य बहुत है। उससे दूसरो कृष्टिमें अनन्तवें भागप्रमाण विशेषहीन है। इसी प्रकार अन्तिम कष्टिके प्राप्त होने तक विशेषहीन-विशेषहीन जानना चाहिए। अथ निक्षेपद्रव्यस्य पूर्वापूर्वकृष्टिसंधिगतविशेष प्ररूपयति
णवरि असंखाणंतिमभागूणं पुवकिटिसंधीसु । हेठिमखंडपमाणेणेव विशेसेण हीणादो ।।२८९।।
नवरि असंख्यातानन्तिमभागोनं पूर्वकृष्टिसंधिषु ।
अधस्तनखंडप्रमाणेनैव विशेषेण हीनात् ॥२८९।। सं० टी०-अयं तु विशेषः द्वितीयादिसमयेषु कृष्टिद्रव्यनिक्षेपे पूर्वापूर्वकृष्टिसंधिषु अपूर्वकृष्टीनां चरमकृष्टिनिक्षिप्तद्रव्यात् पूर्वकृष्टिप्रथमकृष्टिनिक्षिप्तद्रव्यमसंख्येयभागेनानंतभागेन च न्यन
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व १२ ।१६ ००० व १२ ११६ - ४ एकाधस्तनकृष्टिद्रव्येणैकोभयद्रव्यविशेषेण च हीनत्वात । अय
। १० । १०ख ओ प ४ १६ - ४ ओ प ४१६ -४
ख ख२ ख ख२ मर्थः प्राक सप्रपंचं व्याख्यात इति नेह प्रतन्यते ।।२८९।।
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