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लब्धिसार अब निक्षेप द्रव्यके पूर्व और अपूर्व सन्धिगत विशेषको बतलाते हैं
स० च०-इतना विशेष जो पूर्व अपूर्व कृष्टिकी संधिनिविषै अपूर्वकृष्टिकी अंतकृष्टिविषै निक्षेपण कोया द्रव्यतै पूर्व कृष्टि की प्रथम कृष्टिविषै निक्षेपण कीया द्रव्य है सो असंख्यातवाँ भागकरि वा अनंतवाँ भागकरि घटता है । जाते एक अधस्तन कृष्टि का द्रव्य अर एक उभय द्रव्यका विशेष ताकरि हीन हो है । सो कथन पूर्व किया हो है ॥२८९।। अथ कृष्टीनां शक्त्यल्पबहुत्वप्रदर्शनार्थमाह
अवरादो चरिमेत्ति य अणंतगुणिदक्कमादु सत्तीदो । इदि किट्ठीकरणद्धा बादरलोहस्स विदियद्धं ।।२९०।।
अवरस्मात् चरम इति च अनंतगृणितक्रमात् शक्तितः । इति कृष्टिकरणाद्धा बादरलोभस्य द्वितीयार्धम् ।।२९०।।
सं० टी०-अपूर्वकृष्टिजघन्यकृष्टयविभागप्रतिच्छेदभ्यः व ख ४ द्वितीयादिकृष्टयः पर्वकृष्टिचरम
कृष्टिपर्यंता अनंतानंतगुणितशक्तयो गच्छंति । तत्र तच्चरमकृष्टौ रूपोनपूर्वापूर्व कृष्ट्यायाममात्रवरानंतगण
कारैर्गणितमविभागप्रतिच्छेदप्रमाणं व ख ४ अपवर्तिते एवं भवति व । एवं तृतीयादिसमयेषु कृष्टिकरण
ख ४
कालचरमसमयपर्यंतेषु असंख्यातगुणितक्रण द्रव्यमपकृष्य पूर्वापूर्वकृष्टिषु प्रागक्तविधानेन द्रव्यनिक्षेपं करोति इत्युक्तप्रकारेण सूक्ष्मकृष्टिकरणे सति वादरलोभवेदक कालस्य द्वितीयार्धमात्रसूक्ष्मकृष्टिकरणकालो गच्छति । यथा क्षपकश्रेण्यां पूर्वापूर्वस्पर्धकद्रव्यं सर्वमपि गृहीत्वा कृष्टीः करोति तथोपशमश्रेण्यां, किंतु पूर्वस्पर्धकद्रव्यात कृष्टिकरणकालयोग्यमसंख्यातैकभागमात्रं द्रव्यमपकृष्य सूक्ष्मकृष्टीः करोति । शेषबहुभागमात्रस्पर्धकद्रव्यं स्वस्थाने एवोपशमयतीत्यर्थविशेषो ज्ञातव्यः ॥२९०।।
अब कृष्टियोंके शक्तिसम्बन्धी अल्पबहुत्वका कथन
स० चं०-अपूर्व कृष्टिकी जघन्य कृष्टिके अनुभागके अविभाग प्रतिच्छेद हैं। तिनतें द्वितीयादि पूर्व कृष्टिकी अंत कृष्टि पर्यंतके अविभाग प्रतिच्छेद क्रम” अनंत-अनंत गुणे हैं। तहाँ पूर्व कृष्टिकी अंतकृष्टिविषै एक घाटि पूर्व अपूर्वकृष्टिका जो प्रमाण तितनीबार अनंतका गुणकार हो है । ऐसें द्वितीय समयविष विधान कीया। बहुरि जैसैं द्वितीय समयवि विधान कह्या तैसैं ही कृष्टिकरण कालके तृतीयादि अंतसमयपर्यंतनिविषै क्रम” असंख्यातगुणा द्रव्यकौं अपकर्षण करि पूर्वोक्त प्रकार निक्षेपण करै है। इस प्रकार बादर लोभ वेदक कालका द्वितीय अर्धमात्ररूप सूक्ष्म
१. तिव्वमंददाए जहणिया किट्टी थोवा । विदिया किट्टी अणंतगुणा । तदिया अणंतगुणा । एवमणंतगणाए सेढीए गच्छदि जाव चरिमकिट्टि ति । एसो विदियतिभागो किटीकरणद्धा णाम । वही पृ. ३१४-३१५ ।
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