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उपशान्तकषाय में उदयप्रकृतियोंसम्बन्धी विचार
त्रिचरमादिप्रथम निषेकपर्यन्ताश्च सर्वे निषेकाः साम्प्रतिकगुणश्र ण्यायामसमय प्रतिमिताः पुञ्जीकृताः एकसमयाप
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कृष्टगुणश्र णिद्रव्यमात्रं द्रव्यं स १२ - एतच्च तत्काल वस्थितिसत्त्वगोपुच्छद्रव्येण स १२ - २१६-२० ७ ओप ७ नृ । ओ १२ । १६ । ४ a
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अनेन साधिकमुदेतीति ।
ननु प्रथमसमयकृतगुणश्रेणिशीर्षस्य उपरितनसमयेष्वपि तत्र तत्रोदयमानं द्रव्यं एकसमयापकृष्टद्रव्यमात्रमेव सम्भवति, ततः कारणात्कथं प्रथमसमयकृतगुणश्र णिशीर्षसमये एवोत्कृष्टप्रदेशोदयः सम्भवतीति नाशङ्कितव्यं उपरितनसमयेषूदयमागतेष्वेकसमयापकृष्टद्रव्यमात्रस्य समानत्वेऽपि प्रथमसमय कृष्टिद्रव्य पात्रस्य समानत्वेऽपि प्रथमसमयकृतगुणश्र णोशीर्षसमय सत्त्वगोपुच्छद्रव्यात् उत्तरोत्तर समय सत्त्वगोपुच्छद्रव्याणाकचयहीनत्वेन तत्र तत्रोदयद्रव्यस्य किञ्चिन्न्यूनत्वा ००० दथापूर्वकरणप्रथथा दिस मयकृतगलितावशेषगुणीशीर्षमये साम्प्रतिक गुण व्यायामाभ्यन्तरवर्तिन्युदयागते तदा बहुभिः प्रावतनगुणश्रोणीनिषेकैः तात्कालिक सत्त्वगोपुच्छद्रव्येण चाभ्यधिकं बहुत रद्रव्यमुदयमागमिष्यतोत्यपि न मन्तव्यं सूक्ष्मसाम्परायचरमसमयपर्यन्त निक्षिप्तप्राक्तनगुणश्र णिद्रव्यात्सर्वस्मादपि उपशान्तकषायविशुद्धिमाहात्म्येन साम्प्रतापकृष्टगुणश्र ेणिद्रव्यजघन्यनिषेकस्याप्यसंख्येयगुणत्वसम्भवात् । अतः कारणादधस्तनोपरितनसमयोदयनिषेकेभ्यः प्रथमसमयकृतगुणश्र णीशीर्ष समयोदय निषेकद्रव्यं बहुतरमिति सूक्तं ॥ ३०५ ॥
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उक्त अर्थका खुलासा
स० चं०—–उपशांतकषायका प्रथम समयविषै उदयावलीका प्रथम समय लगाय गुणणि आयाम जेता प्रमाण लीएँ आरम्भ कीया तितना प्रमाण लीए ही द्वितीयादि समयनिविषै भी गुणश्रेणि आयाम है । जातें उदयावलीविषै एक समय व्यतीत होतैं उपरितन स्थितिका एक समय गुणश्रेणि आयामविषै मिले है । याही उदयादि अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम है । बहुरि उपशांत कषायका प्रथम समयविषै जेता द्रव्य अपकर्षणकरि गुणश्र णिविषै दीया तितना ही समय समय प्रति दीजिए है जातें इहाँ परिणाम अवस्थित है, ताके निमित्ततें अपकर्षणरूप द्रव्यका भी प्रमाण अवस्थित है | बहुरि प्रथम समयविषै कीनी जे गुणश्रेणि ताका शीर्ष कहिए अंत निषेक सो जिससमय उदय आवै तिस समय उत्कृष्ट कर्म परमाणूनिका उदय जानना जातें तिस समयविषै प्रथम समयविषै करी गुणश्रेणीका तो अंत निषेक अर दूसरा समयविषै करी गुणश्र ेणिका द्विचरम निषेक आदि इस समय विषै करी गुणश्रेणिका प्रथम निषेक पर्यंत सर्वनिषेक मिलि गुणश्रेणिमात्र द्रव्य भया सो तिस समय सम्बन्धी निषेकविषै एकट्ठा हूवा सो तिस निषेकविषै पूर्वं सत्तारूप तिष्ठे था जो गोपुच्छ द्रव्य तिस करि सहित उदय हो है । बहुरि यातें ऊपरिके समयनिविषै भी मिलिकरि गुण णिमात्र द्रव्य एकठा हो है परन्तु गोपुच्छ द्रव्यविषै एक एक चयमात्र घटता द्रव्य पाइए तातैं तहाँ ही उत्कृष्ट प्रदेशनिका उदयरूप कहया है । कोऊ कहैगा कि पूर्वे गलितावशेष आया था ताका शीर्षरूप समय है सो अब करी गुणश्र ेणि आयामके अभ्यंतरवर्ती है आ गया है तस समय बहुत गुणश्र णिनिके निषेक अर तिस समय सम्बन्धी गोपुच्छ द्रव्य मिलि बहुत घणा द्रव्य उदयरूप हो है तहाँ उत्कृष्ट द्रव्यका उदय क्यों न कहो ? ताकौं कहिए है - पूर्व गुण णिविषै निक्षेपण कीया सर्व द्रव्यतें भी इहाँ गुणश्रेणिका जघन्य निषेकविषै भी
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