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लब्धिसार
ऊपरिक अनुदय कृष्टिका प्रमाण एकसौ बीस था ताकौं पाँचका भाग दीएँ चोईस पाये सा अवशेष रही कृष्टिकी अंत कृष्टितैं लगाय इतनी कृष्टि तौ इहां नवीन उदयरूप न हो हैं । अर तिस प्रथम समयविषै नीचेको असी कृष्टि उदय रूप न थीं तिनकौं पाँचका भाग दीए सोलह पाए सो इतनी नीचेकी अनुदय कृष्टि की अंत कृष्टितैं लगाय इहाँ उदय रूप भई ऐसें चौईसमें सोलह घटाएँ आठ रहे सो इतनी कृष्टि प्रथम समयतें दूसरा समयविषै घाटि उदय हो हैं तातें दूसरे समय सातसै बाणवे कृष्टिका उदय जानना । ऐसें ही यथार्थ कथन समझना । इहाँ बहुत अनुभाग युक्त जे ऊपरकी कृष्टि तिनिका अभाव करनेतैं अर स्तोक अनुभाग युक्त जे नीचेकी कृष्टि तिनका सद्भाव करते प्रथम समयविषे उदय आया अनुभागतें द्वितीय समयविषै उदय आया अनुभाग का घटना हो है ऐसा जानना । ऐसें ही सूक्ष्म सांपरायका तृतीय आदि अंतसमय पर्यंत विशेष घटता क्रम लीएँ कृष्टिनिका उदय क्रमतें जानना । विशेषका प्रमाण जेती पूर्व समयवषै घटी थी ताक पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग दीए एक भागमात्र जानना || २९८ ||
अथ सूक्ष्म कृष्टिद्रव्योपशमन विधानप्ररूपणार्थमाह
किट्ट हुमादीदो चरिमो त्ति असंखगुणिदसेढीए । उवसमदि हु तच्चरिमे अवरट्ठदिबंधणं छण्हं ॥२९९॥ कृष्टि सूक्ष्मादितः चरम इति असंख्णगुणितश्रेण्याः । उपशमयति हि तच्चरमे अवरस्थितिबंधनं षण्णाम् ॥ २९९ ॥
सं० टी० – सूक्ष्म सांप रायस्य प्रथमसमये सकलसूक्ष्मकृष्टिद्रव्यस्य पल्यासंख्यातैकभागमात्रं -
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१२-२२ उपशम्यति । द्वितीयसमये ततोऽसंख्येयगुणं द्रव्यमुपशमयति स १२ - ७।८ । ओप प ७ । ८ ओ
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एवं तृतीयादिसमयेष्वसंख्यातगुणितक्रमेणोपशमय्य चरमसमये नरमफालिद्रव्यं स
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शमयति । ये च रामयोनद्वयावलिमात्र संज्वलन लोभनव कबंध समयप्रवद्वास्ते च सूक्ष्मसां पराय प्रथमसमयादारभ्य समयं समयं प्रत्यमंख्यातगुणितक्रमणोपशाम्यते । सूक्ष्मसांपरायचरमसमये षष्णामायुर्मोह वर्ज्यानां कर्मणां जघन्यस्थितिबंधो भवति ।। २९९ ।।
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कृष्टियों की उपविधिका निर्देश
स० चं० - सूक्ष्म सांपरायका प्रथम समर्याविषै समस्त सूक्ष्म कृष्टिनिका द्रव्यकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीएं एक भागमात्र जो द्रव्य ताक उपशमावै है । दूसरे समय तातैं
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१. ताधे चैव सन्त्रासु किट्टीसु पदेसग्गमुवसामेदि गुणसेढीए । जे दोआवलियबंधा दुसमणा ते वि उवसामेदि । जा उदयावलिया छंडिदा सा स्थिवुक्कसंकमेण किट्टीसु विपच्चिहिदि । वही पृ० ३२३-३२४ ।
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