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बन्धापसरणके होनेपर होनेवाले स्थितिबन्धका निर्देश
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बन्धस्य चारित्रमोहस्य सहस्रसागरोपमचतुःसप्तमभागप्रमितश्च स्थितिबन्धः असंज्ञिजीवे आनेतव्यः । अतः उत्तरत्रापि चतुरिन्द्रियादिषु अनेनैव त्रैराशिकविघानेन तत्र तत्र स्थितिबन्धप्रमाणमानेतव्यम् ।। २३०॥
सं० चं०-तिस एकेन्द्री समान स्थितिबन्धतै परै संख्यात हजार स्थितिबन्ध भए वीसियका एक पल्य तीसियका ड्योढ पल्य चालीसियका दोय पल्यप्रमाण स्थितिबन्ध हो है। इहां असंज्ञीकै सत्तर कोडाकोडी सागर स्थितिका धारक दर्शनमोहका हजार सागर बन्ध होइ तौ बीस कोडाकोडी स्थितिका धारक नाम गोत्रनिका केता होइ । ऐसै त्रैराशिक कीएं हजार सागरका दोय सातवाँ भाग आवै है। ऐसे औरनिविषै भी त्रैराशिक विधान जानना ॥ २३०॥
अथ पल्यमात्रपल्यसंख्यातभागमात्रसंख्यातवर्षसहस्रमात्रस्थितिबन्धानां त्रयाणामुत्पत्तेः प्राक्स्थितिबन्धापसरणप्रमाणनिर्देशार्थमिदमाह
पल्लस्स संखभागं संखगुणणं असंखगुणहीणं । बंधोसरणं पल्लं पल्लसंखं ति संखवस्सं ति ।। २३१ ।। पल्यस्य संख्यभागं संख्यगुणोनमसंख्यगुणहीनम् ।
बन्धापसरणं पल्यं पल्यासंख्यमिति संख्यवर्षामिति ॥ २३१ ॥ सं० टी०-अन्तःकोटीकोटिमात्रस्थितिबन्धात्प्रभूतिपल्योत्पत्तिपर्यन्तं पल्यसंख्यातकभागमात्रं स्थितिबन्धापसरणं भवति, पल्यमात्रस्थितिबन्धात्प्रभृति पल्यसंख्यातबहभागमात्रं स्थितिबन्धापसरणं भवति । पल्यस्थितेरनन्तरं दरापक्रष्टिस्थितिपर्यन्तं संख्यातगणहीनां पल्यसंख्यातकभागमात्री स्थिति बध्नातीत्यर्थः । दूरापकृष्टिस्थितेः प्रभृति संख्यातवर्षसहस्रमात्रस्थितिबन्धोत्पत्तिपर्यन्तं पल्यासंख्यातबहुभागमा स्थितिबन्धापसरणं भवति । दूरापकृष्टेरनन्तरं संख्यातसहस्रमात्रस्थितिबन्धपर्यन्तं असंख्यातगुणहीनां पल्यासंख्यातकभागमात्रीं स्थिति बध्नातीत्यर्थः । संखगुणूणमसंखगुणमित्यत्र गुणशब्दस्य बहुभागवाचित्वात् ॥ २३१ ॥
बन्धापसरणबन्धके विषयमें विशेष खुलासा
सं० चं०-अन्तःकोटाकोटी स्थितिबन्ध” लगाय यावत् पल्यमात्र स्थितिबन्ध भया तावत् स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पल्यके संख्यातवें भागमात्र है। बहुरि पल्यमात्र स्थितिबन्ध” लगाय दूरापकृष्टि स्थिति होइ तहां पल्यको संख्यातका भाग देइ बहुभागमात्र स्थितिबन्धापसरण हो है। पल्यस्थितिके अनन्तरि दूरापकृष्टि स्थितिपर्यन्त क्रम” संख्यातगुणा घाटि ऐसा पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र स्थितिबन्ध हो है। ऐसा अर्थ जानना । बहुरि दूरापकृष्टि स्थितितें लगाय यावत् संख्यात हजार वर्षमात्र स्थितिबन्ध होइ तहां पल्यकौं असंख्यातका भाग दीजिए बहुभागमात्र स्थितिबन्धापसरण है। दपापकृष्टिौं लगाय संख्यात हजार वर्षमात्र स्थितिपर्यन्त क्रमतें असंख्यातगुणी घाटि ऐसे पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध हो है। ऐसा जानना। एक स्थितिबन्धापसरणकालविर्ष जितना स्थितिबन्ध घट्या सो तौ स्थिति बन्धापसरण जानना अर ताको घटतें जितना स्थितिबन्ध होइ तहां स्थितिबन्ध जानना ॥ २३१॥
___विशेष-प्रकृत गाथामें मुख्यतासे कहाँ कितना स्थितिबन्धापसरण होता है इसका विचार किया है। उपशमश्रोणिमें अपूर्वकरणके प्रथम समयसे स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पल्यके संख्यातवें भागमात्र है। जबतक स्थिति घटकर पल्यप्रमाण नहीं प्राप्त होती तबतक यह क्रम चालू रहता
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