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नपुंसकवेदकी उपशमना अथ प्रथमोद्दिष्टस्य नपुंसकवेदस्योपशमनविधानं प्रदर्शयितुमिदमाह
अंतरकदपढमादो पडिसमयमसंखगुणविहाणकमेणुवसामेदि हु संढं उवसंतं जाण ण च अण्णं ॥ २५२ ॥ अन्तरकृतप्रथमतः प्रतिसमयमसंख्यगुणविधानक्रमे।
णोपशाम्यति हि षण्डं उपशान्तं जानीहि न चान्यम् ॥२५२॥ सं० टी०-अन्तरनिष्ठापनानन्तरसमयात्प्रभृति प्रतिसमयमसंख्यातगुणितक्रमेण नपुंसकवेदद्रव्यं गुणसंक्रमभागहारासंख्यातभागेन खण्डयित्वा एकं खण्डमुपशमयति यावन्नपुंसकवेदोपशमसमाप्तिर्भवति तावदन्तमुहूर्तकालपर्यन्तं कामप्यन्यां प्रकृति नोपशमयति । कर्मणः प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशानामुदीरणाशतरप्युदयायोग्यतया सदवस्थाकारणमुपशमनं सर्वत्र ज्ञेयम् । तत्र नपुंसकवेदस्य प्रथमसमये उपशमनफालिद्रव्यमिदं स । १२-। ४२
७।१०। ४८ । गु
a द्वितीयसमये ततोऽसंख्येयगुणमुपशमनफालिद्रव्यमिदं स । १२- । ४२ । तृतीयसमये ततोऽसंख्येयगुणमुपशमन
७।१०। ४८ । गु
aa फालिद्रव्यमिदं स । १२-। ४२ । एवमन्तम हर्तमात्रोपशमनकालचरमसमयमसंख्यातगुणितक्रमेण नपुंसकवंद
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aaa मुपशमयतीत्यर्थः ॥२५३॥
नपुंसकवेदके उपशमनाविधिका निर्देश
स० चं०–अन्तर करनेके अनंतरि प्रथम समयतें लगाय समय समय प्रति नपुसकवेदका उपशम हो है। तहाँ नपुसकवेदके द्रव्यकौं गुणसंक्रम भागहारका असंख्यातवां भागमात्रभाग हारका भाग देइ तहाँ एक भागमात्र द्रव्यकौं प्रथम समयविषै उपशमावै है । ऐसैं नपुसकवेदका उपशम कालकी समाप्ति पर्यन्त असंख्यातगुणा क्रम लीएं द्रव्य उपशमावै है । सो समय समय प्रति जो द्रव्य उपशमाया ताहीका नाम उपशमन फालिका द्रव्य जानना ॥२५२।।
विशेष-नपुंसकवेदका उपशम करते समय विवक्षित प्रकृतियोंकी उदय उदीरणा होती रहती है । जैसे जो जीव क्रोध संज्वलन और पुरुषवेदके उदयमें श्रेणि आरोहण करता है उसके इन दो प्रकृतियोंकी उदय और उदीरणा होती है। अन्य वेद और कोई एक कषायके उदयसे श्रेणिपर चढ़नेवालेके उनकी उदय-उदोरणा होती है । गाथा २५३ में इष्टकी उदय-उदीरणा होती है उसका यही आशय है। तथा नपुसकवेदको उपशमाते समय जो उसका अन्य प्रकृतियोंमें संक्रम
ता है वह गणसंक्रम होनेसे प्रत्येक समयमें असंख्यातगणे कर्म पजका संक्रम होता है। और प्रति समय संक्रमको प्राप्त होनेवाले कर्मपुञ्जसे असंख्यातगुणे कर्मपुञ्जको उपशमाता है। जब नपुसकवेदका उपशम करता है तब शेष कर्मो की उपशम क्रिया नहीं होती।।
१. सेसाणं कम्माणं ण किंचि उवसामेदि । जं पढमसमये पदेसग्गमुवसामेदि तं थोवै। जं विदियसमये उवसामेदि तमसंखेज्जगणं । एवमसंखेज्जगणाए सेढीए उवसामेदि जाव उवसंतं । वही पृ० २७२-२७३ ।
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