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लब्धिसार
गुणः सा ७- प अष्टाविंशं पदं । २८ । एतस्मादनिवृत्तिकरणप्रथमसमये दर्शनमोहस्य स्थितिसत्त्वं संख्यात
गुणं स ७ ल एकान्नत्रिंशं पदं । २९ । तस्माद्दर्शनमोहजितानां ज्ञानावरणादिशेषकर्मणां जघन्यस्थितिबन्धः
कृतकृत्यवेदकप्रथमसमयसम्भवी संख्यातगुणः सा अं को २ । त्रिशं पदं ३० । तस्मादपूर्वकरणप्रथमसमये
४। ४ । ४ तेषामेव कर्मणामत्कृष्टस्थितिबन्धः संख्यातगुणः सा अंको २ एकत्रिशं पदं ३१ । तस्मात्तेषामेव कर्मणा
मनिवत्तिकरणचरमभागे सम्भवि जघन्यस्थितिसत्त्वं संख्यातगणं सा अंको २ । द्वात्रिंशं पदं ३२ । तस्मात्ते
षामेव कर्मणामपूर्वकरणप्रयमसमये सम्भवदुत्कृष्टस्थितिसत्त्वं संख्येयगुणं सा अं को २ त्रयस्त्रिशं पदं । ३३ । एवं दर्शनमोहक्षपणावसरे संभवदल्पबहुत्वपदानि त्रयस्त्रिशत्संख्यानि प्रवचनानुसारेण व्याख्यातानि ॥ १५३ ॥
सं० चं०-सम्यक्त्वमोहनीका तौ अष्टवर्ष स्थिति करनेके समयतें पहले समयनिविर्षे सम्भवता अर आयु विना अन्य कर्मनिका अनिवृत्तिकरण कालका अन्त भागविर्षे सम्भवता ऐसा जो जघन्य अनुभाग खण्डोत्करणकाल सो संख्यात आवलीमात्र हैं तो भी वक्ष्यमाण सर्वस्थाननितै स्तोक है ॥ १ ॥ तात याका संख्यातवां भागमात्र विशेषकरि अधिक अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे जाका प्रारम्भ भया ऐसा उत्कृष्ट अनुभाग खंडोत्करणका काल है ॥ २॥ तातै संख्यातगुणा अनिवृत्तिकरणका अन्त भागविष सम्भवता ऐसा जघन्य स्थिति कांडकोत्करणकाल है ॥ ३ ॥ तात याका संख्यातवां भागमात्र विशेषकरि अधिक अपूर्वकरणका आदिविर्षे संभवता ऐसा उत्कृष्ट स्थिति कांडकोत्करणका काल हैं ॥ १५३ ॥
सं० चं०–तातै संख्यातगुणा कृतकृत्यवेदकका काल है ॥ ५ ॥ तातै संख्यातगुणा अष्टवर्ष करनेका समयतें लगाय कृतकृत्य वेदकका अन्त समय पर्यन्त सम्यक्त्वमोहनीका क्षपणाका काल है ॥ ६ ॥ तातै संख्यातगुणा अनिवृत्तिकरणका काल है ॥ ७ ॥ तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका काल है॥८॥ तातै अनिवत्तिकरणकाल अर याका संख्यातवां भागमात्र विशेषकरि अधिक अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे जाका प्रारम्भ भया ऐसा-गुणश्रोणि आयाम है ।। १५४ ॥
सं० चं०–तातै संख्यातगुणा सम्यक्त्वमोहनीका द्विचरम स्थितिकांडकका आयाम है ॥ १० ॥ तातै संख्यातगुणा सम्यक्त्वमोहनीकी अन्त स्थितिकांडकका आयाम है ।। ११ ॥ तातै संख्यातगुणा सम्यक्त्वमोहनोका अष्टवर्ष स्थितिका प्रथम स्थितिकांडक आयाम है ॥ १२ ॥ तातें संख्यातगुणा कृतकृत्यवेदकका प्रथम समयविर्षे संभवता जो ज्ञानावरणादिक कर्मनिका स्थितिबन्ध ताका जघन्य आबाधा काल है ॥ १३ ॥ तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे सम्भवता स्थितिबन्धका उत्कृष्ट आबाधा काल है।। १४ । इहां पर्यन्त ए सर्वकाल प्रत्येक यथासम्भव अन्तमुहर्तमात्र ही जानने । तातै संख्यातगुणी सम्यक्वमोहनीकी अष्टवर्ष प्रमाण स्थिति है ॥ १५५ ॥
सं० चं०-तात असंख्यातगुणा सम्यक्त्वमोहनीकी आठवर्षमात्र स्थिति करनेके अर्थिपल्यका असंख्यातवां भागमात्र अन्तका स्थितिकांडक आयाम है ॥ १६ ॥ तातै उच्छिष्टावली
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