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प्रतिपातादि स्थानोंका स्वामित्वनिरूपण
१७१ प्राप्त होता है । इसीप्रकार जो कर्मभूमिज मनुष्य देशसंयमसे संयमको प्राप्त करता हैं उसके ऐसा होने पर पाँचवां अन्तर प्राप्त होता है । तथा सामायिक - छेदोपस्थापना संयम और अनिवृत्ति - करण अभिमुख हुए सूक्ष्मसाम्पराय संयतके मध्य छठा अन्तर प्राप्त होता है । यह छह अन्तरोंका विधान है । इस सम्बन्ध में अन्य सब विशेषताओंको संस्कृत और हिन्दी टीकासे जान लेना चाहिये । वहाँ अन्य सब विशेषताओंका स्पष्ट निर्देश किया ही है । जो प्रतिपातको प्राप्त हुआ उपसमश्र णीवाला जीव मरकर अविरतसम्यक्त्व गुणस्थानको प्राप्त होता है उसको यहाँ नहीं लिया गया है इतना यहाँ विशेष जानना चाहिये ।
इति क्षायोपशमिकस कलचारित्रप्ररूपणं समाप्तं ॥
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