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लब्धिसार
उदयावलीत बाह्य निषेकनिका अपकर्षण कीया जो द्रव्य ताक पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग देइ बहुभाग तौ अन्तरायामकों छांडि ताके उपरिवर्ती जो उपरितन द्वितीय स्थिति ताविषै निक्षेपण करि अवशेष एक भागकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग देइ बहुभागकों सम्यक्त्वमोहनीकी प्रथम स्थितिरूप इहाँ गुणश्रेणि आयाम ताविषै निक्षेपण करे है । अवशेष एकभाग उदयावलीविष निक्षेपण करे है । ऐसें अन्तर करनेका कालका प्रथम समयविषै फालिद्रव्यका अर अपकृष्ट द्रव्यका निक्षेपण करिए है । तहाँ जिन निषेकनिका अन्तर कीजिए है तिनका द्रव्य अन्य निषेकनिविषै अन्तर करनेका काल अन्तर्मुहूर्त है ताकरि निक्षेपण करिए है । तहाँ सिनिका द्रव्य तिस कालके प्रथम समयविषै जेता निक्षेपण कीजिए सो प्रथम फालिका द्रव्य, दूसरे समय जेता निक्षेपण करिए सो दूसरी फालिका द्रव्य ऐसें क्रमतें अन्तसमयविषै अवशेष रह्या तिनका द्रव्यकौं निक्षेपण करिए है सो अन्तफालिका द्रव्य जानना । बहुरि जो गुणश्र णिके अर्थि अपकर्षण कीया द्रव्य सो अपकृष्ट द्रव्य कहिए है । सो प्रथम समय सम्बन्धी फालिद्रव्य वा अपकृष्ट द्रव्यतै द्वितीयादि समय सम्बन्धी फालिद्रव्यका वा अपकृष्ट द्रव्यका प्रमाण समय- प्रति असंख्यातगुणा है । ता निक्षेपण करनेका विधान जैसैं प्रथम समयविषै कह्या तैसे ही जानना ।। २१२ ।।
विशेष — सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्वका बन्ध नहीं होता, इसलिये अन्तरसम्बन्धी स्थितियों में से उत्कीरण किये जानेवाले प्रदेशपुंजको द्वितीय स्थिति ( अन्तरायामके ऊपरकी स्थिति ) में निक्षिप्त न कर समस्त द्रव्यको सम्यक्त्वकी प्रथम स्थिति ( अन्तरायामसे नीचेकी स्थिति ) में निक्षिप्त करता है। तथा सम्यक्त्वकी दूसरी स्थिति के प्रदेशपुजको अपकर्षित कर अपनी प्रथम स्थिति में गुणश्रेणिरूपसे निक्षिप्त करता है । इसी प्रकार मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भी द्वितीय स्थितिके प्रदेशपु को अपकर्षित कर सम्यक्त्वकी प्रथम स्थिति में गुणश्रेणिरूपसे निक्षिप्त करता है । तथा अभिस्थापनावलिको छोड़कर आगमके अनुसार निक्षिप्त करता है, अपनी अन्तरसम्बन्धी स्थितियोंमें निक्षिप्त नहीं करता यह उक्त गाथाका तात्पर्य है ।
सम्मत्तपयपिढमदीसु सरिसाण मिच्छमिस्साणं ।
ठिदिदव्वं सम्मस्स य सरिसणिसेयम्हि संकमदि' ।। २१३ ।।
सम्यक्त्वप्रकृतिप्रथम स्थितिषु सदृशानां मिथ्यमिश्राणाम् । सम्यस्य च सदृशनिषेके संक्रामति ॥ २९३ ॥
स्थितिद्रव्यं
सं० टी० - मिथ्यात्वमिश्रयोरुदयावलिबाह्यान्तरायामे सम्यक्त्वप्रकृतिप्रथमस्थितिसदृशस्थितयो ये निषेकास्तानुत्कीर्य स्वसमानस्थितिषु सम्यक्त्वप्रकृतिप्रथमस्थितिनिषेकेष्वेव निक्षिपति न तेषां निक्षेपविभागोऽस्ति यदुपरिस्थितान्तरायामा निषेकाः फालिगताः सर्वेऽपि पूर्वोक्तविधानेनैव सम्यक्त्वप्रकृतिप्रथमस्थितौ गुणश्रेण्यामुदयावल्यां च विभज्य निक्षिक्षतीर्थः ।। २१३ ।।
निक्षेपणके विषय में विशेष खुलासा
सं० चं० - मिथ्यात्व अर मिश्रमोहनीकी प्रथम स्थितिके सम्यक्त्वमोहनीकी प्रथम स्थिति के समानवर्ती पर्यन्त पाइए है
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१. समत्तपढमट्ठिदीए सरिसं होद्वणुदयावलिबाहिरे जं ट्ठिदं मिच्छत्त- सम्मामिच्छत्त पदेसग्गं तं सम्मत्तस्सुवरि समट्ठदीए संकामेदि । जयध० पु० १३, पृ० २०६ ।
ऊपर जो अन्तरायामके निषेक तिनिका द्रव्यकों अपने अपने
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