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अल्पबहुत्वनिरूपण
१३७ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक असंख्यातगुणा है। कारण कि पूर्व में कहे गये स्थितिकाण्डकसे यह उससे पहलेका स्थितिकाण्डक है ॥ १९ ॥ उससे मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक विशेष अधिक है। कारण कि इस स्थितिकाण्डकमें मिथ्यात्वका उदयावलि बाह्य पूरा द्रव्य लिया गया है। परन्तु सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उस समय अधस्तन स्थितियोंको छोड़कर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण उपरिम बहुभागप्रमाण स्थितियोंका ग्रहण हुआ है। इस कारण अधस्तन असंख्यातवें भाग स्थितियाँ मिथ्यात्वके स्थितिकाण्डकमें सम्मिलित होनेसे वह विशेष अधिक हो गया है ॥ २० ॥
उससे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके असंख्यात गणहानिवाले स्थितिकाण्डकोंमेंसे प्रथम स्थितिकाण्डक असंख्यातगुणा है। कारण कि पूर्वके स्थितिकाण्डकसे संख्यात हजार स्थितिकांडक असंख्यातगुणित क्रमसे पीछे जाकर दूरापकृष्टिसंज्ञक स्थितिके असंख्यात बहुभागको ग्रहणकर यह स्थितिकाण्डक बनता है ।। २१ ॥ उससे संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंमें जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है वह संख्यातगुणा है। कारण कि इसमें दूरापकृष्टिप्रमाण स्थितिको छोड़कर उपरिम संख्यात बहुभागप्रमाण स्थितिको ग्रहणकर यह काण्डक बना है ॥ २२ ॥ उससे पल्योपमप्रमाण स्थिति सत्कर्मके रहते हुए दूसरा स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है। कारण कि पूर्वके स्थितिकाण्डकसे पश्चादानुपूर्वीके अनुसार संख्यात गुणवृद्धिरूप संख्यात हजार स्थितिकाण्डक पीछे जाकर यह काण्डक उपलब्ध होता है ॥ २३ ।। उससे जिस स्थितिकाण्डकके समाप्त होनेपर दर्शनमोहनीयका पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म शेष रहता है वह स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है। यद्यपि यह पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण है, किन्तु पूर्वके स्थितिकाण्डकसे उक्तसूत्रके अनुसार इसे संख्यातगणा ही जानना चाहिए । यहाँ गणकार तत्प्रायोग्य संख्यात है ।। २४ ।। उससे अपूर्वकरणमें प्रथम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है। कारण कि अपूर्वकरणके प्रथम समयमें प्राप्त हुए स्थितिकाण्डकसे विशेष हीन क्रमसे जो कि तत्प्रायोग्य संख्यात अंकप्रमाण स्थितिकाण्डक गुणहानिगर्भ संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर पूर्वका स्थितिकाण्डक उत्पन्न हुआ है। और इस स्थितिकाण्डकके पूर्व स्थितिकाण्डकसम्बन्धी गुणहानियाँ असिद्ध भी नहीं हैं, क्योंकि अपूर्वकरणके भीतर प्रथम स्थितिकाण्डकसे संख्यातगुणाहीन भी स्थितिकाण्डक होता है । इसलिए पूर्वके स्थितिकाण्डकसे यह स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा होता है यह सिद्ध हुआ । २५ ।।
उससे पल्योपमप्रमाण स्थितिके अवशिष्ट रहनेपर होनेवाला प्रथम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है। कारण कि अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण दोनोंमें पल्योपमप्रमाण स्थितिके अवशिष्ट रहनेके पूर्वतक स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है। किन्तु अनिवृत्तिकरणमें पल्योपमप्रमाण स्थितिके अवशिष्ट रहनेपर जो प्रथम स्थितिकाण्डक होता है वह पल्योपमके संख्यात बहुभागप्रमाण होता है। इसलिए पूर्वपदसे यह पद संख्यातगुणा कहा है ॥ २६ ॥ उससे पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है, क्योंकि पूर्वोक्त प्रथम स्थितिकाण्डकसे जो पल्योपमका एक भागप्रमाण स्थितिसत्त्व शेष रहा, यह पद उतना अधिक हैं, इसलिए पूर्वोक्त पदसे यह पद विशेष अधिक कहा है ॥ २७ ॥ उससे अपूर्वकरणमें प्रथम उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका विशेष संख्यातगुणा है, क्योंकि यह पृथक्त्व सागरोपमप्रमाण है। तात्पर्य यह है कि अपूर्वकरणमें जो जघन्य स्थितिकाण्डक होता है उससे यह स्थितिकाण्डक इतना बड़ा है। वहाँ जघन्य स्थिति
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