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गुणश्रेणिरचना
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सातका भाग दीएं मोहनीयका द्रव्य होइ । बहुरि ताकौं देशघाती सर्वघातीका भाग अर्थ अनंतका भाग दीएं तहां एक भागमात्र सर्वघातिनिका द्रव्य हो है । बहुरि ताके सोलह कषाय एक मिथ्यात्व विभाग करनेकौं सतरहका भाग दोएं मिथ्यात्वका द्रव्य हो है सो याकौं पूर्वे पीठबंधविषै शक्तिप्रमाण लीए जो अपकर्षण नामा भागहार ताका भाग दिए तहां एक भाग विना अवशेष बहुभाग थे ते तौ पूर्वे सत्ताविषै जैसें अपने निषेक रचनारूप तिष्ठे थे तैसें ही रहे । बहु जो एक भाग ह्या ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीए तहां बहुभाग उपरितन स्थितिविषै निक्षेपण करें हैं ।। ६९ ।।
विशेष - यहाँ उपरितन स्थितियों में गुणश्रेणिशोर्ष से आगेकी अतिस्थापनावलिसे पूर्व तक की स्थितियाँ ली गई हैं । यहाँ इतना विशेष जानना कि जिस निषेक स्थिति मेंसे द्रव्यका अपकर्षण किया जाय उससे नीचे एक आवलिप्रमाण निषेकस्थितियाँ अतिस्थापनावलिरूप होती हैं और उससे नीचे तक उस निषेकस्थिति के द्रव्यका निक्षेप होता है ।
सेसिग भागे भजिदे असंखलोगेण तत्थ बहुभागं ।
गुणसेढीए सिंचदि सेसेगं च उदयम्हि ॥ ७० ॥ शेषैकभागे भजितेऽसंख्यलोकेन तत्र बहुभागम् । गुणश्रेण्यां सिंचति शेषैकं च उदये ॥ ७० ॥
सं० टी० - पल्या संख्यातैकभागोऽयं स । १२ - अस्मिन्नसंख्येयलोकेन भाजिते बहुभागद्रव्यमिदं - ७ । ख । १७ । ओ । प
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स।
। १२७ । ख । १७ । ओ । प
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स । । १२
७ । ख । १७ । ओ । प
= a गुणश्रेण्यां सिंचति गुणश्रेण्यायामे निक्षिपतीत्यर्थः । शेषैकभागं= a
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उदये उदयावत्यां निक्षिपति । चशब्दः परस्परसमुच्चयार्थः ॥७०||
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स० चं० - अवशेष एक भाग रह्या ताक असंख्यात लोकका भाग देइ तहां बहुभाग गुणश्रेणि आयामविषै देना । अर अवशेष एक भाग उदयावलीविषै देना ||७० ||
उदयावलिस्स दव्वं आवलिभजिदे दु होदि मज्झधणं ।
रूऊणद्वाण देणेण
मज्झिमधाम हरिदे पचयं पचयं गुणिदे आदिणिसेय विसेसहीणे
णिसे हारेण ॥ ७१ ॥ णिसेयहारेण । कर्म तत्तो' ॥७२॥
१. उदयपपडीणमुदयावलिबाहिरा द्विदद्विदोणं पदेसग्गमो कड्डूणभागहारेण खंडिदेयखंड' असंखेज्जलोगेण भजिदेगभागं घेत्तूण उदए बहुगं देदि । विदियसमए विसेसहीणं देदि । एवं विसेसहीणं विसेसहीणं देदि जाव उदयावलियचरिमसमओ त्ति । घ० पु० ६, पृ० २२४ ।
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