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योग
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सूचीपत्र
ये सभी योग नियमसे क्रम-पूर्वक ही प्रवृत्त हो सकते है, युगपत नहीं। जीव भावको अपेक्षा पारिणामिक है और शरीरको अपेक्षा क्षायोपशामिक या औदयिक है।
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योगके भेद व लक्षण योग सामान्यका लक्षण १. निरुक्ति अर्थ, २. जीवका वीर्य या शक्ति विशेष। ३. आत्म प्रदेशोका परिस्पन्द या संकोच विस्तार । ४. समाधिके अर्थमे योग। ५. वर्षादि काल स्थिति । योगके भेद त्रिदण्डके भेद-प्रभेद। द्रव्य भाव आदि योगोंके लक्षण । मनोयोग व वचनयोगके लक्षण -दे० वह वह नाम । काययोग व उसके विशेष -दे० वह वह नाम । आतापन योगादि तप। -दे० कायक्लेश । निक्षेप रूप भेदोंके लक्षण। शुभ व अशुभ योगोंके लक्षण -दे. वह वह नाम । योगके भेद व लक्षण सम्बन्धी तर्क-वितर्क | वस्त्रादिके सयोगसे व्यभिचार निवृत्ति ।
मेघादिके परिस्पन्दमें व्यभिचार निवृत्ति । योगद्वारोंको आस्रव कहनेका कारण ।
-दे० आसव/२ । परिस्पन्द व गतिमें अन्तर । परिस्पन्द लक्षण करनेसे योगोंके तीन भेद नहीं
हो सकेगे। | परिस्पन्दरहित होनेसे आठ मध्य प्रदेशोंमें बन्ध न
हो सकेगा। | अखण्ड जीव प्रदेशोंमें परिस्पन्दकी सिद्धि ।
-दे० जीव/४/७। जीवके चलिताचलित प्रदेश। -दे. जीव/४ । योगमे शुभ अशुभपना क्या। शुभ अशुभ योगमें अनन्तपना कैसे है। योग व लेश्यामें भेदाभेद तया अन्य विषय ।
-दे० लेश्या । योग सामान्य निर्देश योग मार्गणामें भाव योग इष्ट है। योग वीर्यगुणकी पर्याय है। योग कथचित् पारिणामिक भाव है। योग कचित् क्षायोपमिक भाव है। योग कथंचित् औदयिक भाब है। | उत्कृष्ट योग दो समयसे अधिक नहीं रहता। तीनों योगोंकी प्रवृत्ति कमसे ही होती है युगपत् नहीं। तीनों योगोंके निरोधका क्रम ।
योगका स्वामित्व व तत्सम्बन्धी शंकाएँ योगोंमे सम्भव गुणस्थान निर्देश । केवलीको योग होता है। -दे० केवली/। सयोग-अयोग केवली।
-दे० केवली। अन्य योगको प्राप्त हुए बिना गुणस्थान परिवर्तन नहीं होता।
-दे० अन्तर/२। गुणस्थानों में सम्भव योग। योगोंमें सम्भव जीव समास । योगमें सम्भव गुणस्थान, जीवसमास, मार्गणास्थान
आदिके स्वामित्व सम्बन्धी प्ररूपणाएँ। -दे० सत् । योगमार्गणा सम्बन्धी सत्, सख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्प बहुत्वरूप आठ प्रकपणाएँ।
-दे० वह वह नाम । योग मार्गणामे कर्मोंका बन्ध उदय व सच।
-दे० वह वह नाम । कौन योगसे मरकर कहाँ उत्पन्न हो। -दे. जन्म/६। सभी मार्गणाओमें आयके अनुसार व्यय होनेका नियम ।
-दे० मार्गणा। पर्याप्त व अपर्याप्तमें मन, वचन, योग सम्बन्धी शका। मनोयोगोमें भाषा व शरीर पर्याप्तिकी सिद्धि । अप्रमत्त व ध्यानस्थ जीवोंमें असत्य मनोयोग कैसे। समुद्घातगत जीवोमें मन, वचन, योग कैसे। असंशी जीवोमें असत्य व अनुभय वचनयोग कैसे। मारणान्तिक समुद्वातमें उत्कृष्ट योग सम्भव नहीं।
-दे० विशुद्ध/८/४। योगस्थान निर्देश योगस्थान सामान्यका लक्षण । योगस्थानोके भेद । उपपाद योगस्थानका लक्षण । एकान्तानुवृद्धि योगस्थानका लक्षण । परिणाम या घोटमान योगस्थानका लक्षण । | परिणाम योगस्थानोंकी यदमध्य रचना। योगस्थानोंका स्वामित्व सभी जीव समासों में सम्भव है। योगस्थानोके स्वामित्व की सारणी। योगस्थानोंके अवस्थान सम्बन्धी प्ररूपणा ।
-दे० काल/६। लब्ध्यपर्याप्तकके परिणाम योग होने सम्बन्धी दो मत । योगस्थानोंकी क्रमिक वृद्धिका प्रदेशबन्धके साथ
सम्बन्ध । योगवर्गणा निर्देश योग वर्गणाका लक्षण। योग वर्गणाके अविभाग प्रतिच्छेदोकी रचना । योगस्पर्धकका लक्षण
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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